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मोदी सरकार की चुनावी जीत: क्या यह सच में अच्छे दिनों का संकेत है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार चुनावी जीत ने उनकी सरकार को स्थिरता प्रदान की है, लेकिन क्या यह सच में 'अच्छे दिनों' का संकेत है? इस लेख में हम चुनावी प्रचार की रणनीतियों, भविष्य की राजनीतिक स्थिति और लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करेंगे। क्या विपक्ष के बिखरे वोटों के कारण चुनाव परिणामों पर अविश्वास बढ़ेगा? जानें इस गहन विश्लेषण में।
 

चुनावी जीत का विश्लेषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार चुनावी सफलताओं ने उनकी सरकार को एक स्थिरता प्रदान की है, जिससे यह धारणा बनती है कि मोदी सरकार का कार्य प्रभावी है। जनादेश को 'अच्छे दिनों' का प्रतीक माना जा रहा है। लेकिन क्या चुनाव परिणामों की चर्चा में इस तरह की कोई वास्तविकता है? जबकि मीडिया और नैरेटिव पूरी तरह से सत्ता के पक्ष में हैं। इसके बावजूद, 'अच्छे दिनों' का दावा करने का कोई ठोस आधार नहीं है, जिससे यह महसूस हो सके कि चुनावी जीत वास्तव में 'अच्छे दिनों' का परिणाम है। बिहार में लालकिले के सामने हुए विस्फोट की गूंज असुरक्षा और चिंता का संकेत थी, न कि सकारात्मकता का।


चुनाव प्रचार की रणनीतियाँ

चुनाव प्रचार के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने भाजपा और एनडीए का मुख्य संदेश लालू यादव के जंगल राज की याद दिलाना और घुसपैठियों को बाहर निकालने का था। हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव को भड़काने के लिए कई बातें की गईं, जिनका मतदाता की दैनिक जिंदगी से कोई संबंध नहीं था। फिर भी, नीतीश-भाजपा का एनडीए गठबंधन एक बड़ी जीत हासिल करने में सफल रहा। यह जीत जल्द ही महाराष्ट्र और हरियाणा की चुनावी जीत की तरह बासी हो जाएगी। कुछ ही दिनों में, राहुल गांधी और विपक्ष चुनाव आयोग, ईवीएम मशीनों और धांधलियों की शिकायत करते नजर आएंगे।


भविष्य की राजनीतिक स्थिति

महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के चुनावों के बाद, राजनीतिक परिदृश्य में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा। मोदी सरकार और भाजपा 2026 में उत्तर प्रदेश, बंगाल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों के लिए वही पुराने फॉर्मूलों पर काम करना शुरू कर देंगी। बिहार के चुनाव परिणामों के बाद, विपक्ष के बिखरे वोटों के कारण विरोधी पक्ष चुनाव परिणामों पर अविश्वास बनाए रखेगा। मोदी-भाजपा के विरोधी और अधिक संदेह के साथ चुनाव परिणामों पर ध्यान देंगे।


लोकतंत्र की स्थिति

यह भारत के लोकतंत्र में आधी से अधिक आबादी का स्थायी राजनीतिक मनोभाव बन चुका है। प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट किया है कि जब से वह (गुजरात से) जीत रहे हैं, उनकी स्वीकार्यता के साथ-साथ अस्वीकार्यता भी है। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके लिए अच्छे दिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि हैं। ऐसे में लोकतंत्र, राजनीति और राष्ट्र-राज्य की सेहत की चिंता किसे है?