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राज ठाकरे ने उद्धव के साथ संभावित गठबंधन पर पार्टी नेताओं को दिए निर्देश

महाराष्ट्र में बीएमसी चुनावों से पहले राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच संभावित गठबंधन की चर्चा तेज हो गई है। राज ठाकरे ने पार्टी पदाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे इस मुद्दे पर कोई भी बयान देने से पहले उनकी अनुमति लें। यह कदम अनावश्यक बयानबाजी से बचने के लिए उठाया गया है। वर्ली डोम में दोनों भाइयों ने एक साथ रैली की, जिसमें उन्होंने मराठी अस्मिता के महत्व पर जोर दिया। जानें इस राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे की पूरी कहानी।
 

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का एकजुटता का संकेत

राज ठाकरे उद्धव गठबंधन: महाराष्ट्र में बीएमसी चुनावों से पहले राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मराठी एकता के मुद्दे पर एक रैली में भाग लिया। इस संदर्भ में, बीएमसी और अन्य स्थानीय चुनावों से पहले यह चर्चा हो रही है कि क्या राज और उद्धव के बीच कोई गठबंधन होगा या मनसे का शिवसेना में विलय होगा। इस पर विचार किया जा रहा है। हालांकि, आज मनसे प्रमुख ने पार्टी के पदाधिकारियों के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं।


मनसे प्रमुख ने अपने पदाधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि शिवसेना ठाकरे गुट और मनसे के बीच संभावित गठबंधन के बारे में कोई भी आदेश नहीं दिया जाए। इसके साथ ही, उन्होंने कहा कि किसी भी पदाधिकारी को गठबंधन के विषय में कुछ भी कहने से पहले उनकी अनुमति लेनी होगी। यह आदेश राज ठाकरे ने इसलिए जारी किया है ताकि पार्टी के कार्यकर्ता और नेता अनावश्यक बयानबाजी से बच सकें। वर्ली डोम में हुई रैली के बाद, दोनों दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर लगातार बयान दिए थे।


वर्ली डोम में एकजुटता का प्रदर्शन


यह ध्यान देने योग्य है कि फडणवीस सरकार ने कक्षा पहली से पांचवी तक नई शिक्षा नीति के तहत त्रिस्तरीय भाषाई फॉर्मूला लागू किया था। इस निर्णय के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट था, जिसमें राज और उद्धव ठाकरे की पार्टियाँ सबसे अधिक सक्रिय थीं। इस मुद्दे पर वर्ली डोम में दोनों पार्टियों ने विरोध प्रदर्शन किया था। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने विपक्ष के विरोध को देखते हुए एक समिति का गठन कर निर्णय को स्थगित कर दिया। हालांकि, ठाकरे ब्रदर्स ने रैली को स्थगित नहीं किया, बल्कि इसका नाम बदलकर मराठी विजय दिवस रख दिया।


मराठी अस्मिता का महत्व


राज ठाकरे के मना करने के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। संभव है कि दोनों भाई राजनीतिक रूप से एक साथ न आएं, लेकिन मराठी अस्मिता के नाम पर वे एकजुट हैं। इस मुद्दे पर नेता और कार्यकर्ता लगातार बयानबाजी कर रहे थे। राजनीतिक गठबंधन के लिए आवश्यक है कि पार्टियाँ आपस में चुनावी चर्चा करें और किसी नतीजे पर पहुँचें।