राजनीतिक हलचल: जगदीप धनखड़ और योगी आदित्यनाथ की स्थिति पर चर्चा
पतंगबाजी में राजनीतिक समीकरण
इस सप्ताह की राजनीतिक चर्चाओं में जगदीप धनखड़ और योगी आदित्यनाथ की स्थिति लगभग समान रही। कई लोगों का मानना था कि धनखड़ के इस्तीफे के बाद बदलावों का सिलसिला शुरू होगा। लुटियन दिल्ली के जानकारों ने यह तक कहा कि भारत के संवैधानिक इतिहास में उप राष्ट्रपति का ऐसा इस्तीफा राजनाथ सिंह को उप राष्ट्रपति बनाने और उनकी जगह योगी आदित्यनाथ को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लाने का संकेत है, जैसे नेहरू ने कामराज योजना के तहत किया था।
नेहरू का कांग्रेस और आज का राजनीतिक परिदृश्य
यह सब बातें निरर्थक हैं। नेहरू के समय में कांग्रेस एक जीवंत पार्टी थी, जिसमें प्रदेशों के प्रभावशाली मुख्यमंत्रियों का वर्चस्व था। यह इंदिरा गांधी की कांग्रेस या आज की मोदी भाजपा जैसी नहीं थी। नेहरू ने 1962 में चीन से हारने के बाद अपनी गलतियों को स्वीकार किया और संसद में सत्य बोला। जबकि आज के समय में वास्तविकता और ऑपरेशन सिंदूर की कहानियों में एक बड़ा अंतर है।
मोदी का शासन और योगी की भूमिका
इसलिए, नरेंद्र मोदी का शासन आगे भी वैसा ही रहेगा जैसा पिछले ग्यारह वर्षों से है। जगदीप धनखड़ का मोदी और अमित शाह के लिए उतना ही महत्व है जितना कि अन्य पार्टियों के नेताओं या अपने चुने हुए राष्ट्रपतियों का। मोदी को अपने बगीचे में पालतू जानवरों की तरह पसंद हैं।
अमित शाह और योगी आदित्यनाथ का समीकरण
योगी आदित्यनाथ का महत्व इसलिए है क्योंकि अमित शाह उनसे जुड़े हुए हैं। एक जानकार ने सही कहा कि गृह मंत्री रहते हुए अमित शाह आनंदीबेन को नहीं हटा सके, तो योगी को कैसे हटा सकते हैं?
भविष्य की राजनीति में योगी का स्थान
मेरा मानना है कि गुजरात, उत्तर प्रदेश, और अब महाराष्ट्र में अमित शाह का वर्चस्व पहले जैसा नहीं रहेगा। वे भाजपा संगठन पर अपने खास लोगों को अध्यक्ष बना सकते हैं, लेकिन जमीनी राजनीति में उनका प्रभाव कम होगा। इसलिए, भाजपा के भविष्य में योगी आदित्यनाथ की भूमिका अनिवार्य है। मोदी उन्हें दिल्ली आने के लिए मना सकते हैं, लेकिन वे समझते हैं कि उत्तर प्रदेश में योगी का हिंदू करिश्मा आवश्यक है।