×

राजस्थान कांग्रेस में गहलोत-पायलट की मुलाकात से सियासी समीकरण बदलने की संभावना

राजस्थान कांग्रेस के प्रमुख नेताओं अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच हाल ही में हुई मुलाकात ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। यह मुलाकात न केवल एक औपचारिक भेंट थी, बल्कि इसके पीछे गहरे राजनीतिक संकेत भी छिपे हैं। दोनों नेताओं के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव के खत्म होने की उम्मीद अब बढ़ गई है। क्या यह सुलह स्थायी होगी? जानिए इस मुलाकात के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

गहलोत और पायलट के बीच बढ़ती नजदीकियां

अशोक गहलोत और सचिन पायलट: राजस्थान कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं के बीच लंबे समय से चल रहा तनाव अब समाप्त होता दिख रहा है। पांच साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के बीच की राजनीतिक खटास कुछ कम हुई। सचिन पायलट ने गहलोत से मिलने उनके सरकारी आवास पर जाकर न केवल गर्मजोशी से स्वागत किया, बल्कि मुस्कुराते हुए हाथ भी मिलाया। दोनों के बीच लगभग आधे घंटे तक बातचीत हुई।


मुलाकात की अचानक योजना

यह मुलाकात अचानक तय की गई थी। सचिन पायलट ने गहलोत से मिलने का समय मांगा, जिसे गहलोत ने स्वीकार कर लिया। दिलचस्प बात यह है कि पायलट के आवास से गहलोत के घर की दूरी केवल आधा किलोमीटर है, लेकिन यह राजनीतिक दूरी वर्षों से बनी हुई थी।


मुलाकात का उद्देश्य

दोनों नेताओं के बीच बातचीत स्व. राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि के कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर थी। गहलोत ने इस मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर लिखा कि वह और राजेश पायलट 1980 में एक साथ लोकसभा में पहुंचे थे और लगभग 18 वर्षों तक सांसद रहे। उनके निधन से पार्टी को गहरा आघात लगा था, और यह पीड़ा आज भी बनी हुई है।


राजनीतिक संकेत

इस मुलाकात को केवल एक औपचारिक भेंट नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। 2020 में जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे, तब से दोनों नेताओं के बीच की दूरी बढ़ गई थी। उस समय गहलोत को सरकार बचाने के लिए अपने विधायकों को 45 दिनों तक होटल में ठहराना पड़ा था। इसके बाद से दोनों नेताओं के बीच बयानबाज़ी का सिलसिला जारी रहा।


मुलाकात का महत्व

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुलाकात राजेश पायलट की पुण्यतिथि के बहाने शुरू हुई, लेकिन इसके दूरगामी संकेत हो सकते हैं। प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से चल रही खींचतान के खत्म होने की उम्मीद अब बढ़ गई है। पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को लगता है कि यदि यह सुलह बनी रहती है, तो 2028 के चुनाव में कांग्रेस के लिए राह आसान हो सकती है।


गहलोत-पायलट विवाद का इतिहास

गहलोत और पायलट के बीच का विवाद केवल वैचारिक मतभेद नहीं था, बल्कि यह नेतृत्व की लड़ाई में बदल गया था। पायलट खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानते थे, लेकिन 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा। इसके बाद 2020 में उनका विद्रोह सामने आया, जिसमें गहलोत ने उन्हें 'निकम्मा' तक कह दिया था।


भविष्य की संभावनाएं

आज की मुलाकात ने राजस्थान की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह सुलह स्थायी है या केवल एक प्रतीकात्मक क्षण। यदि आने वाले दिनों में दोनों नेता सार्वजनिक मंचों पर साथ दिखते हैं या संयुक्त बयान जारी करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि कांग्रेस ने एक बड़ी टूट से खुद को बचा लिया है।