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राजस्थान में फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र का विवाद: विधायक की बेटी पर गंभीर आरोप

राजस्थान में भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी कंचन चौहान पर फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के जरिए RAS परीक्षा में चयन का गंभीर आरोप लगा है। शिकायतकर्ता ने इस मामले की जांच की मांग की है, जबकि विधायक ने इसे व्यक्तिगत रंजिश बताया है। क्या यह मामला राजनीतिक साजिश है या सच? जानें पूरी कहानी में।
 

राजस्थान की राजनीति में नया विवाद

राजस्थान में एक नया राजनीतिक विवाद उभरा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी, कंचन चौहान, पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र के माध्यम से राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) परीक्षा में सफलता प्राप्त की और सरकारी नौकरी हासिल की। इस मामले की जांच के लिए राज्य के विशेष योग्यजन निदेशालय ने सिफारिश की है।


यह विवाद तब शुरू हुआ जब 12 अगस्त को ब्यावर के निवासी फणीश कुमार सोनी ने सीएम पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई। सोनी ने आरोप लगाया कि कंचन चौहान ने आरएएस-2018 परीक्षा में फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र का उपयोग किया। इसके बाद, निदेशालय ने 21 अगस्त को अजमेर स्थित राजस्व बोर्ड को पत्र भेजकर मामले की जांच करने की सिफारिश की।


सोनी ने कंचन चौहान के शैक्षिक दस्तावेजों की भी जांच कराने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि कंचन के दस्तावेज सही पाए जाते हैं, तो पूरे मामले की सच्चाई सामने आ जाएगी। उन्होंने विशेष रूप से कंचन के नवोदय स्कूल और उदयपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त दस्तावेजों की जांच का आग्रह किया है।


भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत ने इन आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताया है। उन्होंने कहा कि यह आरोप व्यक्तिगत रंजिश का परिणाम हैं। रावत ने कहा, “यह आरोप पूरी तरह से झूठे हैं। शिकायतकर्ता ने मुझसे एक जमीनी मामले में मदद मांगी थी, लेकिन जब मैंने उसे गलत काम करने से मना कर दिया, तो उसने बदले की भावना से यह आरोप लगाए।”


सोनी ने कंचन चौहान के दिव्यांगता प्रमाण पत्र की वैधता की जांच के लिए एक मेडिकल परीक्षण की मांग की है। उनका सुझाव है कि यह परीक्षण किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में मेडिकल बोर्ड द्वारा किया जाए, क्योंकि जिन डॉक्टरों ने यह प्रमाण पत्र जारी किया था, वे अब सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।


कंचन चौहान ने 2013 और 2016 में भी आरएएस परीक्षा दी थी। पहले प्रयास में वह प्री परीक्षा पास नहीं कर सकीं, लेकिन दूसरे प्रयास में उन्होंने प्री तो पास किया, परंतु मेंस परीक्षा में सफल नहीं हो पाईं। अंततः, 2018 की परीक्षा में उन्होंने सफलता प्राप्त की और इंटरव्यू के बाद करीब 600वीं रैंक हासिल की। 27 दिसंबर 2021 को उन्हें नायब तहसीलदार के रूप में गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) में नियुक्त किया गया और बाद में उन्हें करेड़ा तहसीलदार के पद पर पोस्टिंग दी गई।


यह मामला अब राजनीतिक और कानूनी दबाव में आ गया है। शिकायतकर्ता दस्तावेज और मेडिकल जांच की मांग पर अड़ा हुआ है, जबकि विधायक रावत इसे राजनीतिक साजिश मानते हैं। अब राजस्व बोर्ड और निदेशालय की जांच पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।