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राज्यसभा की संसदीय समिति की बैठक में जस्टिस वर्मा के मामले पर उठे सवाल

राज्यसभा की कार्मिक, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक में जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले पर कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए। सदस्यों ने एफआईआर न दर्ज होने, जजों की आचार संहिता के पालन में कमी और राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी पर चिंता व्यक्त की। इस बैठक में न्यायाधीशों की सुविधाओं और परिवारजनों की वकालत पर भी चर्चा हुई। जानें इस बैठक में और क्या मुद्दे उठाए गए।
 

संसदीय समिति की बैठक

संसदीय समिति की बैठक: बुधवार को राज्यसभा की कार्मिक, विधि और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में विधि मंत्रालय के सचिव ने भाग लिया। समिति के सदस्यों ने जस्टिस यशवंत वर्मा सहित कई मुद्दों पर प्रश्न उठाए। आचार संहिता पर गहन चर्चा हुई। सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में वीरस्वामी मामले की समीक्षा का सुझाव भी दिया गया। इसके साथ ही न्यायाधीशों की आचार संहिता और सेवानिवृत्ति के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड लागू करने का प्रस्ताव भी रखा गया।


जस्टिस वर्मा के मामले पर उठे सवाल

  • सदस्यों ने पूछा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई?
  • यह भी सवाल उठाया गया कि जब जज को सस्पेंड करने का कोई प्रावधान नहीं है, तो सीजेआई ने वर्मा से केस कैसे वापस ले लिए? यदि मामला गंभीर था, तो कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
  • कुछ सदस्यों ने यह भी कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को अब भी कार और स्टाफ जैसी सुविधाएं मिल रही हैं, जो अनुचित है।


आचार संहिता पर चर्चा

  • समिति में यह बात भी उठी कि जजों के लिए आचार संहिता केवल कागजों पर ही सीमित है, इसका पालन वास्तविकता में नहीं होता है।
  • यह भी कहा गया कि जहां सभी अधिकारी अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं, वहीं जज ऐसा नहीं करते, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।


राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी पर आपत्ति

राजनीतिक संगठनों से जुड़ी गतिविधियों में भागीदारी पर आपत्ति: कुछ सदस्यों ने राजनीतिक रूप से संबद्ध कार्यक्रमों में जजों की भागीदारी पर आपत्ति जताई, जिसमें हालिया कार्यक्रमों का अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख किया गया था।


राजनीतिक लाभ के लिए नियुक्तियां

राजनीतिक लाभ के लिए नियुक्तियां: यह आरोप लगाया गया कि कुछ जज राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाकर 'प्लम पोस्टिंग' (लाभकारी पद) लेते हैं।


परिवारजनों की वकालत को लेकर चिंता

परिवारजनों की वकालत को लेकर चिंता: कई सदस्यों ने न्यायिक संस्थानों में रिश्तेदारों की वकालत को लेकर चिंता व्यक्त की। कहा गया कि केवल यह कहना कि कोई वकील अपने रिश्तेदार जज की अदालत में पेश नहीं होता, पर्याप्त नहीं है; पूरे न्यायिक परिसर में रिश्तेदारी की उपस्थिति पर पुनर्विचार होना चाहिए।