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राहुल गांधी की चुनौती: मोदी की व्यवस्था से संघर्ष

राहुल गांधी वर्तमान में मोदी द्वारा स्थापित राजनीतिक व्यवस्था का सामना कर रहे हैं। इस लेख में, हम देखेंगे कि कैसे राहुल मुद्दों की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि मोदी चुनाव आयोग और मीडिया पर नियंत्रण बनाए हुए हैं। क्या कांग्रेस को चुनाव जीतने नहीं दिया जा रहा है? बिहार की समस्याएँ और मीडिया का रवैया भी इस संघर्ष में महत्वपूर्ण हैं। जानें इस जटिल राजनीतिक परिदृश्य के बारे में और कैसे राहुल अपने सिद्धांतों के साथ खड़े हैं।
 

राहुल का संघर्ष

राहुल गांधी को मोदी द्वारा स्थापित पूरी व्यवस्था का सामना करना पड़ रहा है। क्या इस तरह का कोई उदाहरण पहले देखा गया है? वर्तमान में विरथ रघुवीरा की याद आती है। शायद यह लोगों को समझ में आए। अंततः रावण रथी की कहानी का अंत भी हुआ था।


यहां स्थिति समान नहीं है। रास्ता लंबा हो सकता है, लेकिन राहुल की बातें गलत नहीं हैं। वे मुद्दों की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि मोदी चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट और अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं।


कांग्रेस की चुनौतियाँ

कांग्रेस की गलतियों की गिनती की जा सकती है, लेकिन क्या ये चुनाव हारने का कारण हैं? असल में, कांग्रेस को चुनाव जीतने नहीं दिया जा रहा है। राहुल को खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। क्या चुनावों में सामान्य स्थितियों को बनाए रखा गया है? वोटर लिस्ट से लेकर ईवीएम तक सब पर नियंत्रण है। चुनाव आयोग एक कठपुतली बन चुका है।


दिल्ली की स्थिति

दिल्ली अब एक गैस चेंबर बन चुकी है। एम्स के डॉक्टरों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि यह जान के लिए खतरा है। लेकिन क्या प्रधानमंत्री ने इस पर एक शब्द भी कहा? कोई कार्रवाई या बैठक नहीं हुई। प्रधानमंत्री जानते हैं कि मीडिया इस पर सवाल नहीं उठाएगा।


बिहार की समस्याएँ

बिहार में राहुल और तेजस्वी द्वारा उठाए गए मुद्दे क्या गलत हैं? क्या रोजगार का सवाल सबसे महत्वपूर्ण नहीं है? क्या पलायन की समस्या सबसे बड़ी नहीं है? 2025 के चुनाव में कई लोग बिहार गए हैं। क्या वहां की गरीबी कहीं और देखी जा सकती है?


मोदी ने बिहार को विकसित राज्य बनाने का वादा किया था, लेकिन क्या उन्होंने ऐसा किया? बिहार का कर्ज 3.02 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। यह प्रति व्यक्ति 24 हजार रुपए से अधिक है।


मीडिया का रवैया

मीडिया अब कर्ज के आंकड़ों को छुपा रहा है। पहले यह आम बात थी कि हर व्यक्ति पर कितना कर्ज है। अब कोई यह नहीं बताता कि राष्ट्रपति भवन में कितने कमरे हैं।


राहुल को रोजगार और नौकरी के मुद्दों पर सवाल उठाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। विपक्ष को चुनावी चंदा जुटाने में कठिनाई हो रही है।


संविधान और न्यायपालिका

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड को गलत ठहराया, लेकिन मोदी ने उस पर हमला किया। क्या कोई संवैधानिक संस्था अपना काम कर रही है? राहुल अकेले अपने उसूलों के साथ लड़ाई लड़ रहे हैं।


क्या मोदी किसी सिद्धांत पर चुनाव लड़ रहे हैं? उनकी मातृसंस्था आरएसएस भी अब छोटी लगती है।


राहुल का दृष्टिकोण

राहुल आज की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। क्या सिर्फ चुनाव हारने से उनके मुद्दे खत्म हो गए हैं? कोई नहीं लिखेगा कि विरथ थे इसलिए परेशानियां आईं।


राहुल बिना भय और याचना के अपने उसूलों के लिए खड़े हैं। क्या यह आसान है? उनकी लोकसभा सदस्यता छीनी गई, लेकिन वे अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हट रहे।