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राहुल गांधी की बिहार यात्रा: दलित और पिछड़ों के साथ संवाद का नया अध्याय

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में अपनी यात्राओं के जरिए दलित और पिछड़े वर्ग के साथ संवाद स्थापित करने का नया अध्याय शुरू किया है। इस वर्ष वे पांच बार बिहार आए हैं, जिनमें से कई यात्राएं सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित रही हैं। राहुल की ये यात्राएं लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को चुनौती देने के लिए भी मानी जा रही हैं। हालांकि, उन्होंने पार्टी के सवर्ण नेताओं को किनारे कर दिया है, जिससे उनकी स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं। इस लेख में राहुल के विचार, उनकी यात्राओं का उद्देश्य और कांग्रेस के भीतर की राजनीति पर चर्चा की गई है।
 

राहुल गांधी की लगातार बिहार यात्राएं

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी बिहार में अपनी यात्राओं के जरिए एक नया रिकॉर्ड बना रहे हैं। चुनावों से पहले शायद ही किसी नेता ने इस तरह से एक राज्य में इतनी बार यात्रा की हो। इस वर्ष, वे बिहार की यात्रा पांच बार कर चुके हैं, जिनमें से चार यात्राएं दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से की गई हैं।


हाल ही में, राहुल ने स्वतंत्रता संग्राम के भूले-बिसरे नायक जगलाल चौधरी की जयंती पर भाग लिया और माउंटेन मैन के नाम से प्रसिद्ध दशरथ मांझी के घर भी गए। एक यात्रा के दौरान, उन्होंने अंबेडकर छात्रावास के छात्रों से भी मुलाकात की। उनकी ये यात्राएं लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव को चुनौती देने के लिए भी मानी जा रही हैं।


राहुल गांधी ने धीरे-धीरे पार्टी के सवर्ण नेताओं को किनारे कर दिया है, जिससे अब वे उनके कार्यक्रमों में नजर नहीं आते।


कांग्रेस के नेताओं की स्थिति

प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद, अखिलेश प्रसाद सिंह कुछ समय तक कांग्रेस के कार्यक्रमों में दिखाई दिए, लेकिन अब उनकी उपस्थिति कम हो गई है। उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया है, लेकिन बिहार की राजनीति में उनकी कोई खास भूमिका नहीं है।


कन्हैया कुमार ने पलायन रोकने और नौकरी देने के लिए यात्रा निकाली, लेकिन उसके बाद वे भी सक्रियता से गायब हो गए हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा को राहुल ने कुछ समय तक अपने साथ रखा, लेकिन अब वे भी दूर हैं।


हालांकि, लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के साथ कुछ सवर्ण नेता दिखाई देते हैं, लेकिन राहुल गांधी ने सभी सवर्ण नेताओं को एक-एक करके किनारे कर दिया है। उनके भाषणों में केवल जाति जनगणना और आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बातें होती हैं।


आरक्षण पर राहुल गांधी के विचार

राहुल ने अपनी बिहार यात्रा के दौरान राजगीर में अति पिछड़ी जातियों के सम्मेलन में भाग लिया। वहां उन्होंने सवाल उठाया कि जब पिछड़े, दलित और आदिवासी 90 प्रतिशत हैं, तो आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत करने का विचार कहां से आया।


क्या राहुल गांधी को यह नहीं पता कि यह विचार सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस से आया था, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय की गई थी? वे न्यायपालिका और संविधान के संस्थानों का सम्मान करने की बात करते हैं, लेकिन खुद उन्हें राजनीति में घसीटते हैं।


राजधानी दिल्ली के एम्स और अन्य सरकारी अस्पतालों में हजारों डॉक्टर पिछड़ी जातियों से हैं। राहुल का यह कहना कि एक लड़की डॉक्टर नहीं बन सकती क्योंकि वह पिछड़ी जाति की है, पूरी तरह से गलत है।


कांग्रेस के कई नेता इस स्थिति से चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि यदि सवर्ण वोटर पार्टी छोड़ देते हैं, तो कई नेता चुनाव हार सकते हैं। इसलिए, राहुल के भाषण के बाद, कांग्रेस नेता अपने क्षेत्रों में जाकर लोगों से कह रहे हैं कि राहुल की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।