लद्दाख की घटना: सरकार को नागरिकों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए
लद्दाख की घटना से सीखने की आवश्यकता
जब कोई यह कहता है कि लद्दाख की घटना से सरकार को सबक लेना चाहिए, तो उसे अक्सर युवाओं को भड़काने वाला और देश विरोधी करार दिया जाता है। लेकिन यह सही नहीं है। लद्दाख की घटना और पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल में हुई घटनाओं से सीखने की बात करने वाले लोग वास्तव में शुभचिंतक हैं, जो भारत में ऐसी घटनाओं के पुनरावृत्ति नहीं चाहते। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि सरकारों को नागरिकों की सहनशीलता की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है कि सरकारें नागरिकों के धैर्य की परीक्षा ले रही हैं। यह दृष्टिकोण आत्मघाती है। यह निष्कर्ष इस आधार पर है कि जिन देशों में युवा पीढ़ी ने आंदोलन किया, वे सभी लोकतांत्रिक थे और वहां की सरकारें भी लोकतांत्रिक प्रणाली से चुनी गई थीं।
सरकार का लोकतांत्रिक आचरण
भारत को यह समझने की आवश्यकता है कि केवल लोकतांत्रिक सरकार का होना और यह बार-बार कहना कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, पर्याप्त नहीं है। सरकार का आचरण भी लोकतांत्रिक होना चाहिए। लद्दाख के मामले में ऐसा नहीं दिखा। सरकार ने लद्दाख के शांतिप्रिय लोगों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया। पिछले साल, 2024 में, सोनम वांगचुक के नेतृत्व में लद्दाख के लोगों ने दिल्ली आकर अपनी मांगें रखने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा की। लेकिन सरकार ने उनकी गिरफ्तारी कर दी।
अनशन और सरकार की अनदेखी
हाल ही में, सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके साथी अनशन पर बैठे, लेकिन सरकार ने उनसे बातचीत की पहल नहीं की। अनशन के दो हफ्ते बाद, जब कुछ बुजुर्गों की तबियत बिगड़ी, तब युवाओं ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। 24 सितंबर को लद्दाख के इतिहास में पहली बार पुलिस ने आंदोलनकारियों पर फायरिंग की, जिसमें चार लोग मारे गए। इसके बाद सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया गया।
सरकार की प्रतिक्रिया और संवाद की आवश्यकता
पुलिस की फायरिंग और वांगचुक की गिरफ्तारी को कई तर्कों के सहारे सही ठहराया जा रहा है। लेकिन क्या यह उचित नहीं है कि अनशन कर रहे लोगों से बात की जाए? सरकार का दृष्टिकोण यह हो गया है कि किसी भी प्रतिरोध की अनदेखी की जाए। अगर नागरिकों का कोई समूह किसी बात की मांग करता है, तो उसे खारिज कर दिया जाता है। संवाद हर समस्या का समाधान है। सरकार को नागरिकों की भावनाओं को समझने की आवश्यकता है।
संवाद का महत्व
अगर नागरिकों का कोई समूह कोई मांग उठाता है, तो बिना किसी देरी के उनसे बात की जानी चाहिए। संवाद की अनुपस्थिति ही कई हिंसक आंदोलनों का कारण बनती है। सरकारों को यह समझना चाहिए कि लोकतांत्रिक सरकारों से लोग संवाद की अपेक्षा रखते हैं। इसलिए, सरकार को नागरिकों की भावनाओं को समझने और उन्हें सुनने की आवश्यकता है।