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लैटरल एंट्री प्रक्रिया में रुकावट: क्या है कारण?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई लैटरल एंट्री प्रक्रिया में अचानक रुकावट आई है, जिससे कई सवाल उठ रहे हैं। सांसदों के सवालों के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि इस प्रक्रिया में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। क्या यही कारण है कि इसे रोका गया? प्रशांत किशोर का कहना है कि यदि बिहार में उनकी सरकार बनती है, तो वे इस प्रक्रिया को फिर से शुरू करेंगे। जानिए इस मुद्दे के पीछे की सच्चाई और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

लैटरल एंट्री की प्रक्रिया पर सवाल

यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को लैटरल एंट्री के माध्यम से केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव बनाने की प्रक्रिया शुरू की, तो इसे अचानक क्यों रोक दिया गया? पिछले वर्ष इसकी अंतिम वैकेंसी जारी की गई थी, लेकिन उसे तुरंत वापस ले लिया गया। हाल ही में सांसदों ने इस मुद्दे पर कुछ प्रश्न उठाए थे, जिनके उत्तर में केंद्र सरकार ने संसद में स्पष्ट किया कि लैटरल एंट्री से होने वाली नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इस पर सवाल उठता है कि क्या इसी कारण से यह प्रक्रिया ठप कर दी गई? क्या केंद्र सरकार को सोशल मीडिया में बन रहे नैरेटिव की चिंता थी और आरक्षण विरोधी ठहराए जाने के डर से इसे रोका गया?


केंद्र में इस योजना की शुरुआत का श्रेय प्रशांत किशोर को दिया जाता है। उन्होंने कहा है कि उनकी सलाह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह योजना लागू की थी। उनका दावा है कि यदि बिहार में उनकी सरकार बनती है, तो वे लैटरल एंट्री के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को नियुक्त करेंगे और बिहार की नौकरशाही को सुधारेंगे। यह ध्यान देने योग्य है कि इस देश में जो भी महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, वे नॉन आईएएस यानी लैटरल एंट्री के लोगों द्वारा किए गए हैं। हरित क्रांति का श्रेय एमएस स्वामीनाथन को, दूध की श्वेत क्रांति का जॉर्ज कुरियन को, अंतरिक्ष की क्रांति का विक्रम साराभाई को, और एटॉमिक क्रांति का होमी जहांगीर भाभा को जाता है। मिसाइल क्रांति का श्रेय एपीजे अब्दुल कलाम को और संचार क्रांति का सैम पित्रोदा को दिया जाता है। ऐसे लोगों की पहचान करना आवश्यक है। यदि लैटरल एंट्री के माध्यम से भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दिया गया, तो कुछ भी हासिल नहीं होगा।