वंदे मातरम्: 150 वर्षों का गौरव और भारतीयता का प्रतीक
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक महत्व
नई दिल्ली: इस वर्ष भारत 'वंदे मातरम्' के 150 वर्षों का जश्न मना रहा है। यह गीत, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देशवासियों में देशभक्ति की भावना जगाई, केवल एक गीत नहीं है, बल्कि भारत माता के प्रति समर्पण और प्रेम का प्रतीक है। यह आज भी उतनी ही भावनाएं उत्पन्न करता है, जितनी कि डेढ़ सदी पहले करता था। 'वंदे मातरम्' ने भारतीयों को एकजुट किया, स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया और मातृभूमि के प्रति समर्पण का संदेश दिया। जब इसकी पंक्तियां गूंजती हैं, तो हर भारतीय के दिल में गर्व और भावनाओं की लहर दौड़ जाती है।
कब और किसने रची थी 'वंदे मातरम्'?
'वंदे मातरम्' की रचना 1875 में प्रसिद्ध बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। यह गीत उनकी प्रसिद्ध कृति 'आनंदमठ' (1882) में पहली बार प्रकाशित हुआ। उपन्यास की पृष्ठभूमि भारत के औपनिवेशिक संघर्ष के समय की है, जिसमें बंकिम चंद्र ने भारत को एक दिव्य माता के रूप में चित्रित किया है।
ब्रिटिश शासन के दौरान, यह गीत एकता, साहस और स्वाभिमान का प्रतीक बन गया। इसने भारतीयों को यह एहसास कराया कि उनकी भूमि केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि एक पवित्र मातृभूमि है, जिसकी रक्षा करना उनका धर्म है।
'वंदे मातरम्' की पहली पंक्तियां- वंदे मातरम्, सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम् का अर्थ है कि मैं तुम्हें नमन करता हूं, हे मां, जो अपने जल से समृद्ध, अपने फलों से परिपूर्ण और दक्षिण की ठंडी पवन से शीतल है। इन शब्दों में भारत की प्राकृतिक सुंदरता के साथ उसकी आत्मा के प्रति आदर और प्रेम छिपा है, जो हर भारतीय के भीतर देशभक्ति की भावना को जागृत करता है।
'वंदे मातरम्' की आजादी के आंदोलन में भूमिका
1900 के दशक की शुरुआत में 'वंदे मातरम्' स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक गीत बन चुका था। इसे राजनीतिक सभाओं, रैलियों और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शनों में गाया जाता था। बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने इसे भारत जागरण का प्रतीक बताया। स्वतंत्र भारत के संविधान सभा ने वर्ष 1950 में 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया।
'वंदे मातरम्' का महत्व आज भी
150 वर्षों के बाद भी 'वंदे मातरम्' भारतीयों के लिए प्रेरणा और एकता का प्रतीक बना हुआ है। यह गीत केवल देशभक्ति का गान नहीं, बल्कि भारत भूमि के प्रति प्रेम, आभार और समर्पण की भावना का प्रतीक है। यह मील का पत्थर हमें याद दिलाता है कि 'वंदे मातरम्' केवल एक नारा नहीं, बल्कि भारत की मिट्टी से जुड़ा वह भाव है जो हर पीढ़ी को अपनी मातृभूमि से जोड़ता है प्रेम, सम्मान और कृतज्ञता के साथ।