विपक्ष की लड़ाई चुनाव आयोग से नहीं, भाजपा से है
विपक्षी गठबंधन की चुनौतियाँ
ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्षी गठबंधन का मुख्य प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी नहीं, बल्कि चुनाव आयोग और अन्य संस्थाएँ हैं। वर्तमान में, सभी संघर्ष चुनाव आयोग या अन्य संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ चल रहे हैं। विपक्षी नेताओं द्वारा चुनाव आयोग के प्रति की जा रही टिप्पणियाँ चौंकाने वाली हैं। पहले भी विपक्षी दल चुनाव आयोग को निशाना बनाते रहे हैं, लेकिन आयोग के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना एक नई बात है।
2002 के दंगों के बाद, जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल्दी चुनाव कराने की मांग की थी, तब चुनाव आयोग ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। उस समय केंद्र में भाजपा की सरकार थी और उमा भारती ने चुनाव आयोग पर हमला करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को उनके पूरे नाम से संबोधित किया था। उस समय कांग्रेस और अन्य दलों ने उमा भारती पर तीखा हमला किया था।
आज वही विपक्षी नेता चुनाव आयोग के लिए क्या-क्या नहीं कह रहे हैं! तृणमूल कांग्रेस के नए नेता अभिषेक बनर्जी ने चुनाव आयोग को 'बेशर्म' कहा, जबकि राहुल गांधी ने इसे 'फ्रॉड' और 'वोट चोर' करार दिया। उन्होंने चुनाव आयुक्तों और उनके कर्मचारियों को धमकी दी कि कोई भी बच नहीं पाएगा। विपक्षी दलों ने 11 अगस्त को संसद भवन से निर्वाचन सदन तक मार्च निकाला, जिसमें सभी ने अपने-अपने राज्य की भाषा में नारे लिखे हुए बैनर लहराए। सभी दलों ने चुनाव आयोग के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया।
हालांकि विपक्षी दलों के आरोपों में कुछ सच्चाई हो सकती है, लेकिन क्या चुनाव आयोग को मुख्य प्रतिद्वंद्वी बनाकर और उसके कर्मचारियों को धमका कर विपक्ष चुनाव जीत सकता है? असल में, विपक्ष की लड़ाई चुनाव आयोग से नहीं, बल्कि भाजपा से है।