संघ परिवार की पुरानी बीमारी: नेतृत्व और धोखे का खेल
संघ परिवार का नेतृत्व और उसके दावे
संघ परिवार के शीर्ष नेताओं ने एक बार फिर अपनी पुरानी आदत, यानी पर-उपदेश कुशलता, का प्रदर्शन किया है। यह न केवल अपने सहयोगियों के साथ, बल्कि उन लोगों के साथ भी जो उनके प्रति उपकार कर चुके हैं। इसका कारण केवल निजी स्वार्थ है, जिसमें समाज या देश के हित का बहाना भी मुश्किल से दिखता है। हाल ही में, उनके एक प्रमुख नेता ने नागपुर में कहा, "अच्छा नेता वही है जो लोगों को सबसे अच्छी तरह मूर्ख बना सके।"
आरएसएस प्रमुख का बयान
आरएसएस के प्रमुख का यह बयान 9 जुलाई 2025 को देश-विदेश में प्रसारित हुआ था: "जब आप 75 साल के हो जाएं, तो समझिए कि अब रुक जाना चाहिए और दूसरों के लिए जगह छोड़नी चाहिए।" लेकिन अब सितंबर में जब कार्यान्वयन का समय आया, तो उन्होंने दिखाया कि उनका उपदेश हमेशा दूसरों के लिए होता है, अपने लिए नहीं।
धोखे का असली चरित्र
संघ परिवार के नेताओं का असली चरित्र अपने निकट सहयोगियों और उपकारियों के साथ धोखा करना है। उनके 'राष्ट्र-निर्माण' और 'सेवक' होने के दावे केवल लोगों को भ्रमित करने के लिए होते हैं। यह केवल 75 पार रिटायरमेंट के धोखे पर ही नहीं, बल्कि 'सच्चा सेक्यूलरिज्म', 'तुष्टीकरण', और 'स्वच्छता-पारदर्शिता' जैसे मुद्दों पर भी लागू होता है।
जनता की समझ और नेताओं की छवि
यह सच है कि आम जनता राजनीतिक निर्णय लेने में अंधविश्वासी और भयभीत होती है। फिर भी, बड़े मुद्दों का बार-बार दोहराव अंततः अंतिम व्यक्ति तक पहुँचता है। इसलिए, जो दलील भाजपा नेतृत्व ने 2014 में दी थी, अब उसे भुलाने का संदेश यही है कि तब कपट हुआ था।
संघ-भाजपा का असली चेहरा
संघ-भाजपा के नेता अब यह नहीं कह सकते कि वे ऐसे अनोखे हैं कि उन पर कोई नियम लागू नहीं होते। अगर ऐसा है, तो उन्होंने आज तक कैसा संगठन बनाया है? अब उनके कार्यकर्ताओं में भी वही उत्साह नहीं रह गया है जो पहले था।
आम भारतीयों की सोच
आम भारतीय अब यह समझने लगे हैं कि सभी दल और नेता लगभग एक जैसे हैं। सत्ता पाने के लिए हर तरह के कुकर्म करने के लिए तैयार हैं। संघ-भाजपा के नेता भी अब अपने मुखौटों के पीछे वही पुराने चेहरे बन गए हैं।