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संत कबीरदास: एक महान कवि और समाज सुधारक

संत कबीरदास, पंद्रहवीं सदी के एक महान कवि और समाज सुधारक, ने अपने जीवन में अंधविश्वास, जातिवाद और कर्मकांडों का विरोध किया। उनकी रचनाएँ न केवल भक्ति आंदोलन को प्रभावित करती हैं, बल्कि आज भी समाज में प्रासंगिक हैं। कबीर की भाषा में हिंदी की विभिन्न बोलियों का समावेश है, और उनके विचारों को हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने अपनाया। जानें कबीरदास की जयंती पर उनके जीवन, शिक्षाओं और समाज में उनके योगदान के बारे में।
 

कबीरदास की भाषा और रचनाएँ

कबीरदास की भाषा सधुक्कड़ी और पंचमेल खिचड़ी है, जिसमें हिंदी की विभिन्न बोलियों के शब्द शामिल हैं। उनकी रचनाओं में राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी और ब्रजभाषा के शब्दों की प्रचुरता है। विद्वानों का मानना है कि रमैनी और सबद में ब्रजभाषा की अधिकता है, जबकि साखी में राजस्थानी और पंजाबी का मिश्रण है।


संत कबीरदास का जीवन और विचार

11 जून को संत कबीरदास की जयंती मनाई जाती है। पंद्रहवीं सदी के इस भारतीय रहस्यवादी कवि ने समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांडों, अंधविश्वास और पाखंड का विरोध किया। कबीर ने जाति भेद को समाप्त करने और धर्म के बंधनों को तोड़ने का कार्य किया। उनके विचारों को हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने अपनाया।


कबीर का प्रभाव और अनुयायी

कबीर का विश्वास एक सर्वोच्च ईश्वर में था, और उनकी रचनाओं ने उत्तर और मध्य भारत के भक्ति आंदोलन को गहराई से प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ सिखों के गुरुग्रंथ में भी शामिल की गई हैं। कबीर पंथ के अनुयायी उन्हें कबीर साहब के नाम से जानते हैं।


कबीर का जन्म और शिक्षा

कबीरदास का जन्म विक्रमी संवत 1455 में काशी में हुआ। उनके अनुयायी ज्येष्ठ पूर्णिमा को उनके प्रकट दिवस के रूप में मनाते हैं। कबीर का विवाह लोई नामक कन्या से हुआ और उनके दो संतानें भी थीं। कबीर ने रामानंद स्वामी से दीक्षा ली, जो नीची जातियों को दीक्षा नहीं देते थे।


कबीर का भंडारा और चमत्कार

कबीर के भंडारे में 18,00,000 लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें एक व्यापारी ने चमत्कारिक रूप से सभी को भोजन कराया। इस घटना ने कबीर के ज्ञान को और भी प्रसिद्ध किया। उनके अनुयायी प्रतिवर्ष दिव्य धर्मयज्ञ का उत्सव मनाते हैं।


कबीर की शिक्षाएँ

कबीर ने अपने दोहों में आत्मा और परमात्मा के ज्ञान को समझाया। उनके विचारों में राम नाम की महिमा और कर्मकांडों का विरोध स्पष्ट है। कबीर ने कभी धर्म परिवर्तन की वकालत नहीं की, बल्कि सभी को एकता का संदेश दिया।


कबीर का अंतिम समय

कबीरदास का निधन विक्रमी संवत 1551 में उत्तर प्रदेश के मगहर में हुआ। उनके जीवन का उद्देश्य लोक कल्याण था। संत कबीर को उनकी जयंती पर कोटिशः नमन।