संयुक्त राष्ट्र का इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष पर नया बयान
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का बयान
UN on Israeli-Palestinian conflict: मध्य पूर्व में इजराइल-फिलिस्तीन का संघर्ष, जो दशकों से चला आ रहा है, एक बार फिर वैश्विक चर्चा का विषय बन गया है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने स्पष्ट किया है कि 'फिलिस्तीनियों के लिए राज्य का दर्जा कोई उपहार नहीं, बल्कि उनका अधिकार है।' न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सदस्य देशों को संबोधित करते हुए, गुटेरेस ने दो-राष्ट्र समाधान को शांति की एकमात्र संभावित राह बताया। उन्होंने कहा कि 1967 से पहले की सीमाओं पर आधारित स्वतंत्र इजराइल और फिलिस्तीन ही स्थायी समाधान का आधार हो सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नया मोड़ तब आया जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने फिलिस्तीन को औपचारिक मान्यता देने की घोषणा की। इससे पहले, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी इसी तरह का कदम उठाया था। विशेषज्ञों का मानना है कि गाजा में इजराइल के लगातार सैन्य अभियानों के बीच यह निर्णय वैश्विक दबाव बढ़ाने की एक महत्वपूर्ण कोशिश है.
UN का दृष्टिकोण
क्या है UN का कहना?
गुटेरेस ने अपने संबोधन में कहा कि यह संघर्ष दशकों से अनसुलझा है और वार्ता हर बार टूटती रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि फिलिस्तीनी राज्य का दर्जा नहीं दिया गया, तो यह चरमपंथियों को बढ़ावा देगा और पूरे मध्य पूर्व की शांति को खतरे में डाल देगा.
फ्रांस और अन्य देशों का रुख
फ्रांस और अन्य देशों का रुख
फ्रांस का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया भी फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। 140 से अधिक देश पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं, लेकिन G7 और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य होने के नाते ब्रिटेन और फ्रांस के फैसले को विशेष महत्व दिया जा रहा है.
इजराइल पर बढ़ता दबाव
इजराइल पर बढ़ता दबाव
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम इजराइल के मौजूदा सैन्य अभियानों के बीच उस पर वैश्विक दबाव बनाने की कोशिश है। इजराइल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है, जबकि फिलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने इन फैसलों का स्वागत किया है.
भारत का रुख
भारत किसके साथ?
12 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने भी उन 142 देशों का समर्थन किया, जिन्होंने द्वि-राष्ट्र समाधान के पक्ष में मतदान किया। यह प्रस्ताव इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के उस बयान के अगले दिन आया जिसमें उन्होंने कहा था कि 'फिलिस्तीनी राज्य कभी अस्तित्व में नहीं आएगा।' भारत का यह रुख उसके लंबे समय से चले आ रहे संतुलित कूटनीतिक दृष्टिकोण को मजबूत करता है.