साध्वी प्रज्ञा का बड़ा खुलासा: मालेगांव ब्लास्ट केस में नेताओं के नाम लेने के लिए किया गया था प्रताड़ित
साध्वी प्रज्ञा का बयान
2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी किए जाने के बाद, पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने एक महत्वपूर्ण दावा किया है। उन्होंने कहा कि जांच के दौरान उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जैसे कई नेताओं का नाम लेने के लिए प्रताड़ित किया गया। उनका कहना है कि उन्हें झूठ बोलने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया।
जबरन नाम लेने का आरोप
नई दिल्ली में दिए गए एक बयान में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि उन्हें कुछ खास नेताओं के नाम लेने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने कहा, "मुझसे कहा गया कि यदि मैं मोदी जी, योगी जी, मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार जैसे नेताओं का नाम लूंगी, तो मुझे प्रताड़ित नहीं किया जाएगा। लेकिन मैंने झूठ बोलने से इनकार कर दिया।" उन्होंने यह भी बताया कि उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि उनके फेफड़े काम करना बंद कर चुके थे और उन्हें एक अस्पताल में जबरन रखा गया था।
मालेगांव ब्लास्ट की घटना
ब्लास्ट की घटना और मुकदमा
29 सितंबर 2008 को नासिक जिले के मालेगांव में रमजान के दौरान एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में रखे विस्फोटक ने विस्फोट किया। इस घटना में छह लोगों की जान गई और सौ से अधिक लोग घायल हुए। एटीएस ने दावा किया कि विस्फोटक जिस मोटरसाइकिल में रखा गया, वह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की थी और आरडीएक्स कर्नल पुरोहित ने जम्मू-कश्मीर से लाकर अपने घर में रखा था। दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया और अदालत ने पर्याप्त सबूत न होने के कारण उन्हें बरी कर दिया।
जांच में उलझनें
एनआईए और एटीएस की जांच में उलझनें
इस मामले की शुरुआत महाराष्ट्र एटीएस ने की थी और जांच के दौरान पहली बार 'भगवा आतंकवाद' शब्द का उल्लेख हुआ। बाद में 2011 में मामला एनआईए को सौंप दिया गया। 2015 में सरकारी वकील रोहिणी सालियन ने आरोप लगाया कि एनआईए ने उन पर आरोपियों के प्रति नरमी बरतने का दबाव डाला था। 2016 की सप्लीमेंट्री चार्जशीट में एनआईए ने एटीएस पर सबूतों की हेरफेर का आरोप लगाया और साध्वी समेत कई को क्लीन चिट दी।
लंबा मुकदमा
17 साल लंबा चला मुकदमा
मामले की सुनवाई 2018 में शुरू हुई, जिसमें कुल 323 गवाहों में से 37 अपने बयान से पलट गए। इस केस की सुनवाई पांच अलग-अलग न्यायाधीशों ने की, और वर्तमान विशेष न्यायाधीश ए. के. लाहोटी का कार्यकाल विशेष रूप से अगस्त 2025 तक बढ़ाया गया ताकि वे फैसला सुना सकें। अभियोजन और बचाव पक्ष की अंतिम दलीलें अप्रैल 2025 में पूरी हुईं और 31 जुलाई को सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया। अदालत ने मृतकों के परिवारों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 का मुआवजा देने का आदेश भी दिया।