सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: राष्ट्रपति को बिलों पर जल्द लेना होगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का महत्व
सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई को राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा लंबित बिलों के मामले में सुनवाई करेगा। इससे पहले कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि विधानसभा द्वारा पारित किसी भी बिल को राज्यपाल और राष्ट्रपति तीन महीने से अधिक समय तक रोक नहीं सकते। इस मुद्दे पर विवाद उत्पन्न हुआ था, जिसमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कई बार अपने विचार व्यक्त किए। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी इस पर अपनी राय दी थी।
संविधान के अनुच्छेद 201 का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में संविधान के अनुच्छेद 201 का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति के पास राज्यपालों द्वारा भेजे गए बिलों पर पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। इसके अलावा, राष्ट्रपति के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है, और बिल की संवैधानिकता का निर्धारण न्यायपालिका द्वारा किया जाएगा।
राष्ट्रपति को निर्णय लेने की आवश्यकता
कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को राज्यों द्वारा पारित बिलों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। यदि निर्णय में देरी होती है, तो इसके लिए कारण बताने होंगे। राष्ट्रपति किसी बिल को बार-बार विधानसभा के पास नहीं भेज सकते। यह निर्णय तमिलनाडु बनाम राज्यपाल विवाद के संदर्भ में लिया गया था। पहले, 8 अप्रैल को कोर्ट ने राज्यपाल के अधिकारों की सीमाएं भी निर्धारित की थीं।
राष्ट्रपति के प्रश्न और विवाद
कोर्ट के आदेश के बाद, 14 मई को राष्ट्रपति ने कोर्ट से 14 प्रश्न पूछे थे, जिसके बाद भी विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई थी।