सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: एसआईआर की वैधता पर उठे सवाल
एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
नई दिल्ली। एसआईआर के मुद्दे पर देशभर में हलचल मची हुई है। जहां केंद्र सरकार एसआईआर की रिपोर्ट को सही मानती है, वहीं विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार इस रिपोर्ट के जरिए वोटों में धांधली कर रही है। मंगलवार को इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि यदि बिहार की मतदाता सूची में कोई अवैधता पाई जाती है, तो इसके परिणामों को सितंबर तक रद्द किया जा सकता है। यह टिप्पणी विपक्ष के लिए एक सकारात्मक संकेत मानी जा रही है, क्योंकि वह लगातार एसआईआर पर सवाल उठा रहा है और संसद में इस पर चर्चा की मांग कर रहा है।
वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण को लेकर विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। मंगलवार को भी विपक्ष ने संसद के बाहर एसआईआर के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने सरकार और चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि भाजपा और चुनाव आयोग मिलकर वोटों की चोरी कर रहे हैं और जनता के अधिकारों का हनन कर रहे हैं।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने मामले की सुनवाई की। जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या एसआईआर का उपयोग फर्जी मतदाताओं को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है। इस पर याचिकाकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव ने उत्तर दिया कि घर-घर जाकर जांच करने पर अधिकारी किसी भी घर में एक नया नाम नहीं ढूंढ पाते। उन्होंने नोटबंदी का भी उल्लेख किया और कहा कि कम से कम उस समय भारतीय रिजर्व बैंक ने अधिसूचनाएं जारी की थीं। यादव के अनुसार, बिहार में एसआईआर विफल रहा है।
चुनाव आयोग की जिम्मेदारी पर सवाल
एसआईआर के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यदि लोग संभावित रूप से वैध नागरिक हैं और उनका नाम पहले से ही मतदाता सूची में है, तो चुनाव आयोग इस धारणा को पलट नहीं सकता और सभी जिम्मेदारी मतदाताओं पर नहीं डाल सकता। उन्होंने कहा कि गहन पुनरीक्षण के नाम पर चुनाव आयोग ने नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्तिगत मतदाताओं पर डाल दी है, और यह सब विधानसभा चुनावों से पहले दो महीने की सीमित अवधि में किया जा रहा है।