सुप्रीम कोर्ट ने बिहार चुनाव की मतदाता सूची पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के अगले दिन, सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि स्थिति में काफी भ्रम है। वर्तमान में तीन मतदाता सूचियाँ उपलब्ध हैं: एक 2022 के संक्षिप्त पुनरीक्षण की सूची, दूसरी एसआईआर के बाद जारी मसौदा सूची, और तीसरी अंतिम मतदाता सूची। इन तीनों सूचियों में मतदाताओं की संख्या भिन्न है। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह मसौदा सूची के बाद हटाए गए और जोड़े गए नामों की जानकारी सार्वजनिक करे।
आयोग को जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि आयोग को 9 अक्टूबर तक बाहर रखे गए मतदाताओं की जानकारी प्रस्तुत करनी होगी, और उसी दिन एसआईआर प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आगे की सुनवाई होगी। पीठ ने यह भी कहा कि अंतिम सूची में मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है, इसलिए अतिरिक्त मतदाताओं की पहचान का खुलासा आवश्यक है। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नए जोड़े गए नामों को लेकर भ्रम है, यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें से कितने नाम मसौदा सूची में कटे थे।
मतदाता संख्या में बदलाव
जून के अंत में एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने से पहले बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड़ थी। पहले चरण के बाद मसौदा सूची में यह संख्या घटकर 7.24 करोड़ हो गई, जबकि अंतिम मतदाता सूची में 7.42 करोड़ नाम हैं। चुनाव आयोग ने बताया कि लगभग 69 लाख नाम हटाए गए और 21.5 लाख नए जोड़े गए। इस प्रकार, मतदाताओं की कुल संख्या में 47 लाख का अंतर आया। ताजा विवाद का विषय यह है कि चुनाव आयोग ने मसौदा सूची के बाद 3.66 लाख मतदाताओं के नाम हटाए हैं, जिनकी जानकारी उसे जारी करनी होगी।
सुनवाई के दौरान की गई दलीलें
मंगलवार को सुनवाई के दौरान, याचिका दायर करने वाली गैर सरकारी संस्था एडीआर की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने दलीलें प्रस्तुत कीं, जबकि कुछ राजनीतिक दलों की ओर से अभिषेक सिंघवी ने बहस की। चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अपना पक्ष रखा। एसआईआर को चुनौती देने वाले वकीलों ने कहा कि 3.66 लाख नाम बिना किसी नोटिस के हटाए गए हैं। आयोग ने जवाब दिया कि बिना नोटिस के कोई नाम न तो हटाया गया है और न जोड़ा गया। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे व्यक्तियों को सामने लाने का निर्देश दिया, जिनका नाम बिना नोटिस के हटाया गया है। आयोग ने कहा कि अंतिम मतदाता सूची जारी होने के एक हफ्ते से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कोई प्रभावित व्यक्ति शिकायत करने नहीं आया है।