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हरियाणा में किन्नू खेती: किसानों की नई दिशा

हरियाणा के किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़कर किन्नू की बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं। चरखी दादरी के किसान अजय कुमार ने 15 एकड़ में किन्नू का बाग लगाकर हर साल 40 लाख रुपये की आय प्राप्त की है। जानें किन्नू की खेती के लाभ, लागत और मंडियों में इसकी मांग के बारे में।
 

किसानों की नई पहल: किन्नू खेती

Kinnow Farming Haryana: चरखी दादरी | हरियाणा सरकार की प्रोत्साहन नीति के चलते, प्रदेश के किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर ऑर्गेनिक और बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं। इसी क्रम में, चरखी दादरी के गांव झोझू कलां के किसान अजय कुमार ने 15 एकड़ रेतीली भूमि पर किन्नू का बाग लगाकर प्रगतिशील किसानों की सूची में अपनी जगह बना ली है।


बागवानी से होने वाला लाभ

अजय ने बताया कि पहले तीन वर्षों में जब पौधे विकसित हो रहे थे, तब उन्होंने उसी भूमि पर गेहूं, सरसों, बाजरा और कपास उगाकर अपनी आजीविका चलाई। अब उनके सैकड़ों किन्नू पेड़ फलों से लदे हुए हैं, जिससे उन्हें हर साल लगभग 40 लाख रुपये की आय हो रही है। पहले इसी 15 एकड़ से पारंपरिक खेती से सालाना 5-6 लाख रुपये ही मिलते थे। किन्नू की खेती की तकनीक उन्होंने पंजाब के एक किसान से सीखी थी।


किन्नू की खेती की लागत

अजय ने बताया कि किन्नू की खेती में प्रति एकड़ 32-34 हजार रुपये का खर्च आता है। एक एकड़ में 110 पौधे लगाए जाते हैं। प्रति पौधे की लागत 100 रुपये, ड्रिप सिस्टम पर 10 हजार रुपये और श्रम सहित अन्य खर्च मिलाकर कुल खर्च लगभग 35 हजार रुपये होता है।


मंडियों में किन्नू की मांग

अजय ने कहा कि एक एकड़ में 110 पौधे होते हैं और हर पौधा औसतन डेढ़ क्विंटल फल देता है। इस प्रकार, एक एकड़ से 200 क्विंटल से अधिक उत्पादन होता है। यदि 20 रुपये प्रति किलो भी मिलते हैं, तो उनकी कमाई 40 लाख रुपये से अधिक हो जाती है। इसमें 5 लाख रुपये श्रम और अन्य खर्च निकल जाते हैं।


उन्होंने बताया कि किन्नू के पौधे एक बार सेट हो जाएं तो 30-35 साल तक फल देते हैं, जिससे यह दीर्घकालिक लाभदायक होता है। अजय अपनी फसल रोहतक, चरखी दादरी, महेंद्रगढ़ और भिवानी मंडियों में भेजते हैं। हर मंडी में अलग-अलग मूल्य होते हैं, और वह जहां अच्छा भाव मिलता है, वहीं माल भेजते हैं।