हिंदी साहित्य के महानायक विनोद कुमार शुक्ल का निधन
साहित्य जगत का एक बड़ा नाम
रायपुर। हिंदी के प्रसिद्ध कवि, कथाकार और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन हो गया। उनकी उम्र 89 वर्ष थी। पिछले कुछ समय से वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे और मंगलवार की शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया था। उनकी कालजयी रचनाओं में 'नौकर की कमीज', 'दीवार में एक खिड़की रहती थी', और 'खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं। उनके उपन्यास 'नौकरी की कमीज' पर मणिकौल ने इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी।
स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हुए
विनोद कुमार शुक्ल पिछले कुछ महीनों से बीमार थे और उनका इलाज रायपुर के एम्स में चल रहा था। ज्ञानपीठ पुरस्कार स्वीकार करते समय उन्होंने कहा था, 'जब हिंदी और अन्य भाषाओं पर संकट की बात की जा रही है, मुझे विश्वास है कि नई पीढ़ी हर भाषा और विचारधारा का सम्मान करेगी। किसी भाषा या अच्छे विचार का नष्ट होना, मनुष्यता का नष्ट होना है।'
साहित्य का समृद्ध युग समाप्त
उनका निधन वास्तव में साहित्य के समृद्ध युग का अंत है। विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं ने भारतीय वैश्विक साहित्य को समृद्ध किया है। वे अपनी पीढ़ी के एकमात्र लेखक थे जिनके लेखन ने नई आलोचना दृष्टि को प्रेरित किया। उनकी भाषा की विशिष्टता, संवेदनात्मक गहराई और उत्कृष्ट सृजनशीलता ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।