×

रानी अहिल्याबाई के बिना हिंदू धर्म और संस्कृति लुप्त हो गई होतीः अलका इनामदार

 


गुवाहाटी, 11 जनवरी (हि.स.)। महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने अपने मराठा साम्राज्य मालवा को मुगल आक्रमणकारियों की लूटपाट, हिंदुओं पर अमानवीय अत्याचारों और हिंदू पूजा स्थलों के विनाश से बचाने की पूरी कोशिश की। अहिल्याबाई के बिना हिंदू धर्म और संस्कृति विलुप्त हो जाती। ये बातें राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह-सरकार्यवाह अलका इनामदार ने कहीं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उत्तर असम शाखा ने शनिवार को गुवाहाटी में पूरे देश के साथ-साथ भारत की परंपराओं और संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली वीर रानी लोकमाता देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती मनाई। इस अवसर पर गुवाहाटी के हेंगरबाड़ी के बाराबारी स्थित सुदर्शनालय के कर्मयोगी गौरीशंकर चक्रवर्ती सभागार में आयोजित व्याख्यान में राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह-सरकार्यवाह अलका इनामदार मुख्य वक्ता रहीं, जिन्होंने रानी अहिल्याबाई की संक्षिप्त जीवनी प्रस्तुत की और भारत की वर्तमान स्थिति और प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे।

महारानी अहिल्याबाई होल्कर मालवा के मराठा साम्राज्य की होल्कर रानी थीं। महाराष्ट्र के अहमदनगर के जामखेड क्षेत्र के चौंडी गांव में एक बेहद साधारण परिवार में जन्मी राजमाता अहिल्याबाई कैसे राजमाता बनीं, इसका संक्षिप्त विवरण अलका ने दिया।

उन्होंने कहा कि रानी अहिल्याबाई एक महान परोपकारी, जनता की सेविका और धर्मपरायण महिला थीं। अहिल्याबाई ने अपनी प्रजा की सुविधा के लिए कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक कार्य किये, जैसे कई मंदिर और धर्मशालाएँ, सड़कें, बाजार और तालाब बनवाना। लोकमाता अहिल्याबाई ने उत्तर प्रदेश के संभल में भी एक मंदिर बनवाया था, जहां वर्तमान में मंदिर विवाद चल रहा है। उन्होंने सोमनाथ और काशी के विश्वनाथ मंदिरों में रानी अहिल्याबाई के योगदान की कहानी भी बताई।

इनामदार ने कहा कि जब मुगलों ने पूरे भारत में साम्राज्य स्थापित कर लिया और लूटपाट और अत्याचार किए, तो उन्होंने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी और हिंदू परंपराओं की रक्षा करने की पूरी कोशिश की। उस समय दिल्ली में शाह आलम, दक्षिण में टीपू सुल्तान और हैदर अली तथा पूर्व में सिराजुद्दौला का शासन था। उस समय की भयावह स्थिति का वर्णन करते हुए अलका इनामदार ने कहा कि अहिल्याबाई ने केवल बुद्धि और चतुराई से मुस्लिम शासकों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। अहिल्याबाई एक बहुत ही योग्य, विवेकशील और कुशल शासक थीं। इसलिए उन्होंने विपक्ष को मजबूती से दबाकर अपनी प्रतिभा और योग्यता से सभी समस्याओं को नियंत्रण में लाया और राज्य में पूर्ण व्यवस्था बहाल की।

उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई ने तीन सौ साल पहले महिलाओं को सशक्त बनाने की पहल की थी। आज की माहेश्वरी साड़ी पहल की स्थापना उन्हीं (अहिल्याबाई) ने की है। उस समय लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती थीं। उन्होंने उस परंपरा को तोड़ दिया। यह नियम अहिल्याबाई द्वारा शुरू किया गया था, जो अपने पति की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार पाने वाली पहली पत्नी थीं। उस समय, यदि पति की मृत्यु हो जाती थी, तो उसकी पत्नी नहीं, बल्कि उसके बच्चे उत्तराधिकारी होते थे। यदि कोई संतान न हो तो पुत्र को गोद लेकर उसे उत्तराधिकारी बनाया जाएगा। वह देश में न्यायिक प्रणाली शुरू करने वाली पहली व्यक्ति भी थी। अलका कहा कि संक्षेप में कहें तो अहिल्याबाई का स्थान चाणक्य के बाद पहला है।

आज के युवा धर्म और संस्कृति की रक्षक, वीरांगना, तेजस्वी महारानी, ​​जन-जन की माता देवी अहिल्याबाई को नहीं जानते। ऐसा इसलिए है क्योंकि इतिहासकारों ने उसे नजरअंदाज किया है और उसे गुप्त रखा है। आज भारत का नया इतिहास लिखा जा रहा है।

आज मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के असम क्षेत्र समन्वयक डाॅ. उमेश चक्रवर्ती और उत्तर असम संघचालक भूपेश शर्मा मौजूद थे। उत्तर असम प्रांत कार्यवाह खगेन सैकिया ने कार्यक्रम में उद्घाटन भाषण दिया। इसके अलावा, प्रान्त संघचालक भूपेश शर्मा ने प्रासंगिक वक्तव्य प्रस्तुत किया।

हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय