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बस्तर दशहरा काछिन गादी पूजा विधान 2 अक्टूबर को

 


जगदलपुर, 1 अक्टूबर (हि.स.)। बस्तर दशहरा में इस वर्ष काछनगादी पूजा विधान 2 अक्टूबर को देर शाम संपन्न होगा। परंपरानुसार पनका जाति की कुंवारी कन्या बेल के कांटे पर काछन देवी के रूप में झूलती हुई राजपरिवार के सदस्यों को बस्तर दशहरा निर्विघ्न संपन्नता की अनुमति प्रदान करेगी।

बस्तर दशहरा में इस वर्ष 8 साल की बालिका पीहू दास पर काछन देवी सवार होंगी, बस्तर राजपरिवार के सदस्यों को बेल के कांटों से बने झूले पर झूलकर दशहरा मनाने की अनुमति प्रदान करेगी। इसके लिए पीहू इन दिनाें देवी की आराधना शुरू कर दी है। तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली पीहू इस विधान को पूरा करने के लिए पिछले कुछ दिनों से उपवास भी रखी हुई है।

पिछले दाे वर्षाें से पीहू ने ही इस रस्म को निभाया था। इससे पहले अनुराधा ने इस विधान काे पूरा किया था। बस्तर दशहरा की यह परंपरा 616 सालों से अनवरत चली आ रही है।

रियासत कालीन ऐतिहासिक बस्तर दशहरा हरियाली अमावश्या तिथि पर पाट जात्रा पूजा विधान के साथ 4 अगस्त से इसकी शुरूआत हो चुकी है। पाट जात्रा के बाद डेरी गड़ाई पूजा विधान एक प्रमुख रस्म 18 सितंबर काे संपन्नता के बाद दुमंजिला विशाल काष्ठ रथों का निर्माण कार्य जारी है। डेरी गड़ाई के बाद नवरात्रि से पहले आश्विन मास की अमावस्या के दिन 2 अक्टूबर काे काछिनगादी पूजा विधान में बस्तर दशहरा के निर्विघ्न संपन्नता की अनुमति बस्तर राजपरिवार को मिलने के बाद 3 अक्टूबर काे नवरात्र के कलश स्थापना, 4 अक्टूबर काे जोगी बिठाई रस्म एवं बस्तर दशहरा का मुख्य आकर्षण रथ परिचालन प्रारम्भ हो जायेगा।

उल्लेखनीय है कि काछिनगादी का अर्थ है काछिन देवी को गद्दी देना। काछिन देवी की गद्दी कांटेदार होती है। कांटेदार झुले की गद्दी पर काछिनदेवी विराजित होती है। काछिनदेवी का रण देवी भी कहते है। काछिनदेवी बस्तर अंचल के मिरगानों (हरिजन)की देवी है। बस्तर महाराजा के द्वारा बस्तर दशहरा से पहले आश्विन अमावस्या को काछिन देवी की अनुमति से ही दशहरा प्रारंभ करने की प्रथा चली आ रही है।

काछनगुड़ी के पुजारी गणेश ने बताया कि इस रस्म की कन्या पीहू बेल के कांटों के झूले पर लेट कर बस्तर दशहरा के निर्विघ्न संपन्नता की अनुमति प्रदान करेगी। काछनगुड़ी में पूजा पाठ कर पीहू दास को तैयार किया जा रहा है। पुजारी ने दिन बताया कि पितृपक्ष आमावस्या तिथि 2 अक्टूबर को काछनगुड़ी में काछनगादी पूजा विधान होगा। पुजारी गणेश ने बताया कि इससे पूर्व कांडा बारा की रस्म में काछन देवी की पूजा संपन्न की गई है। पीहू काछनगादी पूजा विधान को पूरा करे इसके लिए ही पूजा पाठ किया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे