केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में विस्थापितों व शरणार्थियों को कस्टोडियन भूमि पर संपत्ति का अधिकार न देकर उनके साथ विश्वासघात किया है: मंजीत सिंह
विजयपुर, 2 अगस्त (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर में विस्थापित व्यक्तियों (डीपी)/शरणार्थियों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए अपनी पार्टी के जम्मू के प्रांतीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री मंजीत सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा विस्थापित व्यक्तियों/शरणार्थियों को कस्टोडियन भूमि पर मालिकाना हक न देने का शुक्रवार को कड़ा विरोध किया है।
विजयपुर में अपनी पार्टी की एक बैठक को संबोधित करते हुए पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ने जम्मू क्षेत्र में छंब (1965-1971) के विस्थापित व्यक्तियों/शरणार्थियों को राज्य की भूमि पर मालिकाना हक देने पर आश्चर्य व्यक्त किया जबकि कस्टोडियन भूमि पर मालिकाना हक की उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग को नकार दिया गया।
उन्होंने बैठक को संबोधित करते हुए याद दिलाया कि भारत-पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में शत्रुता के बाद इन विस्थापितों/शरणार्थियों के परिवारों को कठिन समय में पलायन करना पड़ा जहां उनके पास निजी संपत्ति/कृषि भूमि थी। हालांकि अपनी पैतृक भूमि से विस्थापित होने के बाद वे अन्य स्थानों पर चले गए जहां उन्हें जम्मू-कश्मीर में तत्कालीन सरकारों द्वारा बसाया गया। उन्होंने कहा कि दशकों से ये विस्थापित/शरणार्थी कस्टोडियन भूमि पर आवंटियों को स्वामित्व अधिकार की मांग कर रहे थे ताकि उन्हें सरकार से मुआवजा और अन्य सुविधाएं मिल सकें। लेकिन उनकी वास्तविक मांग पर सरकार ने विचार नहीं किया और उन्हें राज्य की भूमि पर स्वामित्व अधिकार देने का निर्णय लिया जो अन्याय है और विस्थापितों/शरणार्थियों के घावों पर नमक छिड़कने का प्रयास है।
उन्होंने उनकी मांगों का समर्थन करते हुए कहा कि विस्थापित/शरणार्थियों की तीन से चार पीढ़ियों ने दशकों तक कस्टोडियन भूमि की देखभाल और पोषण किया। उन्होंने आगे कहा कि जब भी इन विस्थापितों/शरणार्थियों की भूमि (कस्टोडियन भूमि) किसी राजमार्ग या अन्य विकास परियोजनाओं के अंतर्गत आती है तो उन्हें मुआवजा नहीं दिया जाता है क्योंकि भूमि का स्वामित्व अपरिवर्तित रहता है हालांकि लोग खेती कर रहे हैं और उक्त भूमि पर अपने घर/वाणिज्यिक प्रतिष्ठान बना चुके हैं। उन्होंने विस्थापितों/शरणार्थियों की भूमि की कमी को दूर करने की भी मांग की।
उन्होंने कहा कि विस्थापितों/शरणार्थियों को गंभीर चिंता है क्योंकि उन्हें आवंटित की गई भूमि सरकारी परियोजनाओं और नहर के काम के लिए अधिग्रहित की गई थी लेकिन भूमि की कमी को दूर करने के लिए उन्हें वैकल्पिक भूमि का मुआवजा नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को गुमराह किया है क्योंकि राज्य की भूमि पर विस्थापितों/शरणार्थियों को संपत्ति का अधिकार देने का आदेश पहले से ही था।
उन्होंने मांग की कि सरकार को 1947 से कस्टोडियन भूमि/राज्य भूमि पर रहने वाले स्थानीय लोगों को संपत्ति के अधिकार देने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार ने दुर्भाग्य से उस पैकेज को बंद कर दिया जिसे तत्कालीन केंद्र सरकार ने विस्थापितों/शरणार्थियों को 5.5 लाख रुपये का भुगतान करने के बाद मंजूर किया था।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने विस्थापितों/शरणार्थियों के लिए 25 लाख रुपये मंजूर किए थे। हालांकि केवल 5.5 लाख रुपये जारी किए गए और फिर पैकेज बंद कर दिया गया। इस प्रकार उन्हें पूरा पैकेज पाने के उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि आश्वासन दिया गया था कि उनके पैकेज की राशि जारी की जाएगी। हालांकि यह एक अधूरा वादा रहा। उन्होंने कहा कि भले ही विस्थापितों/शरणार्थियों ने 2014 के संसदीय चुनावों में अपनी आवाज उठाई और भाजपा का समर्थन किया फिर भी राष्ट्रीय पार्टी ने विस्थापितों/शरणार्थियों की लंबित मांगों को पूरा करने से इंकार कर दिया। उन्होंने मांग की कि विस्थापितों/शरणार्थियों के पक्ष में लंबित पैकेज का भुगतान जारी किया जाना चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार / अमरीक सिंह / बलवान सिंह