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दिल्ली में श्वसन रोगों की बढ़ती संख्या: प्रदूषण का गंभीर प्रभाव

दिल्ली में श्वसन रोगों की बढ़ती संख्या ने स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ा दिया है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, प्रदूषण के कारण गंभीर श्वसन रोगों के मामलों में वृद्धि हो रही है। डॉक्टरों का कहना है कि खराब वायु गुणवत्ता पहले से बीमार लोगों की स्थिति को और बिगाड़ रही है। जानें इस समस्या के पीछे के कारण और अन्य शहरों की स्थिति के बारे में।
 

दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर संकट


दिल्ली की वायु एक बार फिर से लोगों के लिए स्वास्थ्य संकट बन गई है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि पिछले तीन वर्षों में गंभीर श्वसन रोग (ARI) के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। चिकित्सकों का कहना है कि खराब वायु गुणवत्ता पहले से बीमार लोगों की स्थिति को और बिगाड़ रही है। अस्पतालों में खांसी, सांस लेने में कठिनाई और ऑक्सीजन स्तर में गिरावट की शिकायतें तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी दबाव पड़ रहा है।


सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों से प्राप्त रिपोर्टों में प्रदूषण से संबंधित बीमारियों की बढ़ती प्रवृत्ति स्पष्ट है। 2022 में 67,054 ARI मामले दर्ज किए गए, जबकि 2023 में यह संख्या बढ़कर 69,293 हो गई। 2024 में मामलों में थोड़ी कमी आई, लेकिन 10,819 लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। चिकित्सकों का कहना है कि गंभीर मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।


डॉक्टरों की चेतावनी

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषित हवा, विशेषकर PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर रही है। इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सुरंजीत चटर्जी के अनुसार, पिछले दो वर्षों में ओपीडी और भर्ती दोनों में लगभग दोगुनी वृद्धि देखी गई है। उनका कहना है कि यह केवल मौसमी बीमारी नहीं है, बल्कि प्रदूषण का प्रत्यक्ष प्रभाव है।


अन्य शहरों की स्थिति

अन्य महानगरों में भी स्थिति चिंताजनक है। चेन्नई के दो प्रमुख सरकारी अस्पतालों में 2023 और 2024 के दौरान ARI मामलों में स्थिरता देखी गई, लेकिन गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ती रही। मुंबई में स्थिति और भी खराब है, जहां 2023 में 31 मरीज भर्ती हुए थे, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 474 हो गई, जो पांच गुना वृद्धि है।


आपातकालीन कक्षों में भीड़

दिल्ली के अस्पतालों में चिकित्सकों का कहना है कि जब भी स्मॉग बढ़ता है, खांसी, घरघराहट, बुखार और ऑक्सीजन स्तर में कमी के साथ मरीजों की संख्या अचानक बढ़ जाती है। विशेष रूप से अस्थमा, सीओपीडी और हृदय रोग से पीड़ित लोगों की स्थिति तेजी से बिगड़ती है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण का प्रभाव अब रोजमर्रा के स्वास्थ्य संकट के रूप में सामने आ रहा है।


भविष्य की चुनौतियाँ

ICMR के अध्ययन में प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं के बीच गहरा संबंध सामने आया है, जिसे विशेषज्ञ गंभीर चेतावनी मानते हैं। सरकार हर साल राज्यों को AQI आधारित सलाह देती है, लेकिन चिकित्सकों का कहना है कि वास्तविक सुधार तभी संभव है जब वायु गुणवत्ता में ठोस सुधार किया जाए। वर्तमान में, शहरों में धुंध और अस्पतालों में बढ़ते मरीज यह संकेत देते हैं कि समस्या अभी खत्म होने वाली नहीं है।