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अपनी पहचान से वंचित किसान फिर से बन सकेंगे ‘किसान’

 


- अंतिम सर्वे नंबर के एनए हो जाने के बाद भी मिलेगा ‘किसान प्रमाणपत्र’

- मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल की राज्य के किसानों को दी बड़ी भेंट

गांधीनगर, 29 नवंबर (हि.स.)। राज्य की विभिन्न विकास परियोजनाओं के निर्माण में जिन किसानों की संपूर्ण भूमि अधिग्रहित हुई हो, उनके हितों को ध्यान में रखते हुए गुजरात सरकार ने महत्वपूर्ण निर्णय किया है। ऐसी विकास परियोजनाओं में अपनी तमाम जमीन अधिग्रहित हो जाने और उस समय ‘किसान प्रमाणपत्र’ न प्राप्त करने के कारण जो किसान अधिकृत रूप से किसान नहीं रह गए, उन किसानों ने मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के समक्ष ‘स्वागत’ ऑनलाइन जन शिकायत निवारण के राज्य स्तरीय कार्यक्रम में अपनी यह समस्या प्रस्तुत की थी।

मुख्यमंत्री ने ‘स्वागत’ कार्यक्रम में किसानों की ओर से मिले अभ्यावेदनों पर सानुकूल तथा पॉजिटिव दृष्टिकोण अपनाते हुए इन लंबित रही समस्याओं का त्वरित निवारण ला दिया है। राज्य में विभिन्न विकास परियोजनाओं में जिन किसानों की संपूर्ण भूमि अधिग्रहित हुई हो, उन किसानों को कृषि भूमि खरीदने में कोई दिक्कत नहीं हो, इसके लिए राज्य सरकार ने 26 दिसंबर 2008 के प्रस्ताव से यह सुनिश्चित किया है कि ऐसे किसानों को ‘किसान प्रमाणपत्र’ सम्बद्ध जिला कलेक्टर या अधिकृत अधिकारी दे सकते हैं। यह प्रमाणपत्र मिलने की तारीख से तीन वर्ष में कृषि भूमि खरीदने के प्रावधान भी लागू हैं। परंतु जो किसान उनकी संपूर्ण भूमि अधिग्रहित हो जाने के बावजूद प्रमाणपत्र के अभाव में किसान होने की अधिकृत पहचान से वंचित हो गए हों, उन किसानों को उनके हित में ‘किसान प्रमाणपत्र’ प्राप्त करने की सुलभता का एक अवसर प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने एक और किसान हितकारी निर्णय कर इस संबंध में प्रस्ताव जारी (प्रकाशित) करने के दिशा-निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री के इस निर्णय के अनुसार 01 मई 1960 से यानी गुजरात की पृथक राज्य के रूप में स्थापना से अब तक विभिन्न विकास परियोजनाओं में जिन किसानों की संपूर्ण भूमि अधिग्रहित हुई हो और जो उस समय ‘किसान प्रमाणपत्र’ न प्राप्त कर सके हों, वे किसान राज्य सरकार द्वारा यह प्रस्ताव जारी होने के एक वर्ष में ‘किसान प्रमाणपत्र’ प्राप्त करने के लिए सम्बद्ध जिला कलेक्टर के समक्ष आवेदन कर सकेंगे। ऐसा आवेदन मिलने के बाद सम्बद्ध जिला कलेक्टर द्वारा स्व-सत्यापन कर ‘किसान प्रमाणपत्र’ जारी किया जाएगा। इतना ही नहीं, ऐसा प्रमाणपत्र मिलने के तीन वर्ष में किसान को भूमि खरीद लेनी होगी।

राज्य के जिन किसानों की संपूर्ण भूमि विकास परियोजनाओं में अधिग्रहित हो गई है, परंतु उस समय जो ‘किसान प्रमाणपत्र’ प्राप्त नहीं कर सके थे और अधिकृत किसान होने की पहचान से वंचित हो गए थे, उन किसानों को मुख्यमंत्री के इस निर्णय के कारण खेती करने का प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अलावा, कई किसान अपने खाते के सर्वे नंबर में से बाकी रहा एक मात्र सर्वे नंबर कृष्येतर (नॉट फॉर एग्रीकल्चर यानी एनए) कराए जाने के कारण किसान होने की अधिकृत पहचान खो देते थे। ऐसे मामलों में ‘किसान प्रमाणपत्र’ प्राप्त करने का कोई प्रावधान न होने के कारण उन्हें कृषि भूमि खरीदने में मुश्किलें आती थीं। इससे जुड़ी समस्याएं भी किसान अक्सर मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करते थे।

ऐसी समस्याओं के संदर्भ में राज्य सरकार ने निर्णय किया है कि कोई किसान अपनी कृषि भूमि का अंतिम सर्वे नंबर भी एनए हो जाने के पश्चात ‘किसान प्रमाणपत्र’ मांगेगा, तो ऐसी भूमि कृष्येतर (एनए) होने के बाद एक वर्ष में उस किसान को ‘किसान प्रमाणपत्र’ दिया जाएगा और किसान को प्रमाणपत्र मिलने की तारीख से दो वर्ष के भीतर कृषि भूमि खरीदनी होगी। इस आशय का प्रस्ताव जारी होने के एक वर्ष पहले से भी इसी तरह के मामले में अपने किसान की पहचान खो चुके किसान आवेदकों काे भी इस निर्णय का लाभ मिलेगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय