हिसार : माइंडफुलनेस से होती आंतरिक खुशी व संतोष की अनुभूति : प्रो. नरसी राम बिश्नोई
गुजविप्रौवि के सीसीडब्ल्यूबी के सौजन्य से माइंडफुलनेस व हैप्पीनेस पर हुई
कार्यशाला आयोजित
हिसार, 24 फरवरी (हि.स.)। गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा है कि माइंडफुलनेस (सजगता) से न केवल मानसिक
स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि आंतरिक खुशी और संतोष की अनुभूति भी बढ़ती है। सजगता
हमारे मूल्यों को पहचानने, जीवन की छोटी-छोटी खुशियों को संजोने और सकारात्मक दृष्टिकोण
विकसित करने में मदद करती है।
प्रो. नरसी राम बिश्नोई सोमवार को विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर काउंसलिंग एंड
वैल-बींग (सीसीडब्ल्यूबी) के सौजन्य से ‘सजगता एवं खुशी : अंतर्मन की यात्रा’ पर आयोजित एक दिवसीय
कार्यशाला को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे। कुलपति ने कहा कि वर्तमान समय
में विद्यार्थी के जीवन में भी पढ़ाई, असाइनमेंट, परीक्षा तथा भविष्य की योजनाओं से
मन पर दबाव बन जाता है। सजगता का अभ्यास हमें इन चुनौतियों का धैर्य और समझदारी से
सामना करना सिखाती है। एक जागरूक मन किसी भी परिस्थिति में संतुलन बनाए रख सकता है।
गुजविप्रौवि शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता के साथ-साथ विद्यार्थियों के समग्र विकास
एवं मानसिक भावनात्मक स्वास्थ्य को भी अधिक महत्व देता है। कुलपति ने प्रतिभागी विद्यार्थियों
को बताया कि वे अपने कौशल वृद्धि के लिए विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय द्वारा
चलाए जा रहे सर्टिफिकेट, डिप्लोमा व अन्य कोर्सों का भी फायदा उठाएं।
विश्वविद्यालय के चौधरी रणबीर सिंह सभागार में हुई इस कार्यशाला के मुख्य वक्ता
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस, बेंगलुरु के पूर्व विभागाध्यक्ष
प्रो. महेन्द्र प्रताप शर्मा ने कहा कि सजगता भारत की प्राचीन परम्परा है। भारत के
ऋषियों की सचिदानंद की अवधारणा ही वास्तव में सजगता है। उन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध
के ब्रह्मवाक्य ‘अपना दीपक खुद बनो’ को ही अब्रह्मासलो व कार्लरोेजर जैसे मनोवैज्ञानिकों ने
‘आत्म-साक्षात्कार’ कहा है। उन्होंने भगवान बुद्ध द्वारा दी गई ध्यान विधि विपश्यना के बारे में
भी बताया। मनोविज्ञान के क्षेत्र में सजगता को लेकर उत्सुकता बढ़ रही है। डा. महेन्द्र
प्रताप शर्मा ने सजगता प्राप्त करने के लिए ध्यान की अलग-अलग विधियों के बारे में बताया
तथा कहा कि सजगता एक प्रयासरहित प्रयास है। उन्होंने प्रतिभागियों को खुशी के बारे
में भी बताया तथा समझाया कि खुशी को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने
प्रतिभागियों को ध्यान विधियों का अभ्यास भी करवाया।
सीसीडब्ल्यूबी के निदेशक प्रो. संदीप राणा ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि मन
की स्थिति बुद्ध जैसी होगी तो दुनिया में युद्ध जैसी स्थिति नहीं होगी। उन्होंने कहा
कि बाहर क्या चल रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण ये है कि भीतर क्या चल रहा
है। मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. संजय परमार ने इस अवसर पर बताया कि मनोविज्ञान
विभाग न केवल विभाग के विद्यार्थियों के लिए बल्कि समूचे विश्वविद्यालय परिवार को सजग
बनाने के लिए कार्य करता है। कार्यशाला की समन्वयक डा. तरूणा ने कार्यशाला की विस्तृत
रिपोर्ट प्रस्तुत की। कार्यशाला में लगभग 300 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रो. राकेश
बहमनी ने सभी का धन्यवाद किया जबकि डा. गोबिंद यादव व डा. गौरव शर्मा के नेतृत्व में
गुंजन, सुनीता, स्वीटी व प्रवीन ने मंच संचालन किया।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर