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हिसार :वैज्ञानिक आपसी तालमेल को बढ़ाते हुए बेहतर ढंग से करें अनुसंधान: प्रो. बीआर कम्बोज

 


देश के विभिन्न 16 राज्यों के 23 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैंहकृवि में नेमाटोड रोग के निदान पर 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभहिसार, 30 नवंबर (हि.स.)। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सूत्रकृमि विभाग व अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना द्वारा कृषि में सूत्रकृमियों का महत्व-नमूनाकरण, सर्वेक्षण, निष्कर्षण, पहचान और नेमाटोड रोग निदान विषय पर 10 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ हुआ। मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय में आयोजित लघु प्रशिक्षण कार्यक्रम का विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने मुख्य अतिथि के तौर पर शुभारंभ किया।कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने देश के विभिन्न राज्यों में कार्यरत नेमाटोड वैज्ञानिकों से आह्वान करते हुए कहा कि वे आपसी तालमेल के साथ बेहतर ढंग से अनुसंधान कार्य करें ताकि कम समय और कम लागत में अच्छे परिणाम हासिल किए जा सकें। विश्वविद्यालय का नेमेटोलॉजी विभाग नेमाटोड समस्याओं से निपटने के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। विभागों द्वारा किए गए शोध कार्यों से चावल, गेहूं, पॉली हाउस (टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च) मशरूम, फलों व सब्जियों की फसलों में पादप परजीवी निमेटोड के प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास हुआ है। विभाग द्वारा नेमाटोड समस्याओं के बारे में किसानों को जागरूक करने के लिए लगातार नेमाटोड जागरूकता दिवस का आयोजन किया जा रहा है। नेमाटोड समस्याओं और इसके प्रबंधन के प्रभाव को दिखाने के लिए कई नेमाटोड प्रबंधन प्रशिक्षण भी किसानों के खेतों में किए गए हैं। प्रबंधन परीक्षणों में पाॅली हाउस को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने बताया कि नियमित प्रबंधन के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता नियमित प्रजातियों की पहचान करके और फसलों पर उनके प्रभाव को समझ कर हम एकीकृत प्रबंधन प्रथाओं को अपना सकते हैं जो हानिकारक रसायनों पर निर्भरता को कम करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को बढ़ावा देते हैं। नेमाटोड समस्याओं को पहले अनदेखा किया जाता था जिसके कारण किसानों की बड़े स्तर पर आर्थिक हानि हुई है। नेमाटोड एक मूक लेकिन विनाशकारी कीट है। मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश यादव ने कार्यक्रम में आए हुए सभी का स्वागत किया। प्रशिक्षण कोऑर्डिनेटर डॉ. गौतम चावला ने पाठ्यक्रम की अनुसंधान में उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में देश के विभिन्न 16 राज्यों मणिपुर, केरल, बिहार, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तराखंड, राजस्थान, अरुणाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश तथा हरियाणा से 23 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं। डॉ. एचएस गौड ने सृत्रकृमि के परिस्थितियों को जानकर इसके नियंत्रण के बारे में बताया। सूत्रकृमि विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार ने सभी का धन्यवाद किया और पाठ्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। मंच संचालन डॉ. चेत्रा भट्ट ने किया। इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, वैज्ञानिक एवं प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे।

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर