IPS Puran Kumar आत्महत्या मामला: महापंचायत ने सरकार को दिया 48 घंटे का अल्टीमेटम
IPS Puran Kumar आत्महत्या का मामला
IPS Puran Kumar आत्महत्या मामला: हरियाणा में IPS वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या ने सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक नया मोड़ ले लिया है। इस मामले को लेकर गठित 31 सदस्यीय महापंचायती समिति ने सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है कि वह इस मामले में शामिल अधिकारियों, विशेषकर राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) को तुरंत हटाए। समिति के अध्यक्ष जन्नारायण ने स्पष्ट किया कि जब तक DGP को नहीं हटाया जाता, तब तक पोस्टमार्टम और अन्य कार्रवाई पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा।
दलित समुदाय के अधिकारों की रक्षा
महापंचायत ने इस घटना को केवल आत्महत्या नहीं, बल्कि दलित समाज के सम्मान और अधिकारों से जुड़ा मुद्दा बताया है। उन्होंने कहा कि यह IPS अधिकारी पूरन कुमार की शहादत है, जिसे दलित समाज के नेतृत्व में एक आंदोलन का रूप दिया जाएगा। इसके तहत जिला और ब्लॉक स्तर पर भी समितियों का गठन किया जाएगा, जो प्रशासन को ज्ञापन सौंपेंगी। यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की चेतावनी दी गई है।
SC/ST एक्ट की सख्त धाराएं
इस मामले में पूरन कुमार की पत्नी अमनीत पी. कुमार की शिकायत पर FIR में SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) जोड़ी गई है। अमनीत ने पुलिस को पत्र लिखकर पहले जो कमजोर धाराएं लगाई गई थीं, उनकी कानूनी मजबूती पर सवाल उठाए और प्रासंगिक सख्त धाराओं को शामिल करने की मांग की थी। SIT के प्रमुख चंडीगढ़ के IG पुष्पेंद्र कुमार ने पुष्टि की कि यह धारा अब FIR में शामिल कर दी गई है।
परिवार की शर्तें
पूरन कुमार के परिवार ने अब तक पोस्टमार्टम की अनुमति नहीं दी है। उनका कहना है कि जब तक सरकार उनकी प्रमुख मांगों को नहीं मानती, विशेषकर DGP को हटाने की मांग, वे पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाएंगे।
रोहतक SP का तबादला
मामले में नाम आने के बाद हरियाणा सरकार ने रोहतक के पुलिस अधीक्षक (SP) नरेंद्र बिजारनिया को पद से हटा दिया है। पूरन कुमार की पत्नी ने उन पर मानसिक उत्पीड़न और आत्महत्या के लिए उकसाने के गंभीर आरोप लगाए थे। सरकार ने तुरंत प्रभाव से आईपीएस सुरिंदर सिंह भोरिया को नए एसपी के रूप में नियुक्त किया है, जिन्होंने कार्यभार भी संभाल लिया है।
पूरन कुमार आत्महत्या का मामला अब केवल एक आपराधिक प्रकरण नहीं रह गया है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, प्रशासनिक जवाबदेही और दलित अधिकारों की मांग बन गया है। महापंचायत और परिवार की ओर से दी गई सख्त चेतावनियों से सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। यदि अगले 48 घंटों में मांगें नहीं मानी गईं, तो यह विवाद राज्यव्यापी आंदोलन का रूप ले सकता है।