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उत्तराखंड में चुनावी प्रक्रिया में पलायन का असर: मतदाता सत्यापन की चुनौतियाँ

उत्तराखंड में चुनाव आयोग ने प्री-एसआईआर अभियान की शुरुआत की है, लेकिन राज्य में व्यापक पलायन के कारण मतदाता सत्यापन की प्रक्रिया में कई चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। पहाड़ी क्षेत्रों से खाली गांवों में संपर्क साधना और राज्य से बाहर पलायन कर चुके लोगों के प्रमाण जुटाना कठिन हो रहा है। इस लेख में जानें कि कैसे बीएलओ को इन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और क्या उपाय किए जा सकते हैं।
 

चुनाव आयोग का प्री-एसआईआर अभियान


नई दिल्ली: उत्तराखंड में चुनाव आयोग विशेष समरी रिविजन (एसआईआर) से पहले प्री-एसआईआर अभियान की शुरुआत करने जा रहा है। हालांकि, राज्य में व्यापक पलायन के कारण यह प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है। पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर मैदानी इलाकों तक, कई गांव खाली हो चुके हैं, और पिछले एक दशक में मतदाताओं की संख्या में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। ऐसे में मतदाताओं का सत्यापन और संपर्क साधना बीएलओ के लिए कठिनाई भरा होगा।


बीएलओ के लिए संपर्क साधना चुनौती

प्री-एसआईआर के दौरान, बीएलओ को हर मतदाता तक पहुंच बनानी होगी, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में खाली गांवों में यह कार्य बेहद कठिन है। विशेष रूप से, राज्य से बाहर पलायन कर चुके लोगों से संपर्क करना और उनके प्रमाण जुटाना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा, 2003 की सूची में शामिल नहीं हुई विवाहित महिलाएं और नेपाल से मायका रखने वाली महिलाएं भी नई बाधाएं उत्पन्न करेंगी।


मतदाता सत्यापन की जटिलताएँ

प्री-एसआईआर में मतदाता सत्यापन की बड़ी चुनौती


प्री-एसआईआर के तहत, बीएलओ को हर मतदाता से जानकारी जुटानी होगी। लेकिन जिन गांवों में अब कोई नहीं रहता, वहां सत्यापन करना कठिन होगा। राज्य से बाहर गए लोगों का संपर्क जुटाना और उनके नाम यथावत रखना भी मुश्किल कार्य है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि यूपी-दिल्ली में एसआईआर चल रहा है, और उत्तराखंड से सबसे ज्यादा पलायन इन्हीं राज्यों में हो रहा है।


मैदानी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में बदलाव

मैदानी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में सबसे बड़ा बदलाव


एसआईआर का सबसे अधिक प्रभाव उन सीटों पर दिखेगा, जहां मतदाताओं में भारी वृद्धि या कमी दर्ज हुई है। उत्तराखंड की 12 मैदानी सीटों पर पिछले वर्षों में वोटरों की संख्या 72% तक बढ़ी है। इनमें धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र सबसे ऊपर है, जहां 10 वर्षों में सर्वाधिक मतदाता बढ़े हैं।


पहाड़ी सीटों में घटते मतदाता

पहाड़ी सीटों में घटते मतदाता


पलायन के चलते कई पहाड़ी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या लगातार घट रही है। सल्ट, रानीखेत, चौबट्टाखाल, लैंसडौन, पौड़ी, घनसाली, देवप्रयाग और केदारनाथ ऐसी सीटें हैं जहां वोटर कम हुए हैं। एसआईआर के दौरान यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुराने मतदाता अपने गांवों में फिर से नाम जुड़वाते हैं या रोजगार के लिए बाहर रह रहे लोग अपना नाम सूची में बनाए रख पाते हैं या नहीं।


शादीशुदा महिलाओं के लिए सत्यापन की प्रक्रिया

शादीशुदा महिलाओं को करना होगा मायके का सत्यापन


एसआईआर में उन विवाहित महिलाओं के लिए सत्यापन चुनौती बनेगा, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में ससुराल में दर्ज नहीं था। यदि उनका नाम मायके की सूची में दर्ज था, तो यह जानकारी ससुराल क्षेत्र के बीएलओ को देनी होगी।


नेपाल की बहुएं भी होंगी जांच में शामिल

नेपाल की बहुएं भी होंगी जांच में शामिल


नेपाल में मायका रखने वाली महिलाओं के लिए स्थिति और थोड़ी जटिल है, क्योंकि यह मामला नागरिकता से जुड़ सकता है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी पुरुषोत्तम का कहना है कि यह नागरिकता नहीं, बल्कि वोटर लिस्ट के सत्यापन से जुड़ा मामला है।