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क्या कांग्रेस फिर से टूटने की कगार पर है? बिहार चुनावों ने बढ़ाई चिंता

बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार ने पार्टी के भीतर असंतोष और विवादों को जन्म दिया है। वरिष्ठ नेताओं ने सुधार की मांग की है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने पार्टी में विभाजन की आशंका जताई है। क्या कांग्रेस इस संकट से उबर पाएगी? जानें इस लेख में।
 

कांग्रेस की स्थिति पर संकट के बादल


नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की निराशाजनक हार ने कांग्रेस को गहरी चोट पहुंचाई है। पार्टी ने 61 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन केवल 6 सीटें ही जीत सकी। इस कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस के भीतर आंतरिक विवादों को उजागर कर दिया है।


चुनाव परिणामों के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी में एक और विभाजन की संभावना बन रही है। उन्होंने कांग्रेस को 'MMC मुस्लिमलीगी माओवादी कांग्रेस' करार देते हुए कहा कि यह पार्टी जल्द ही फिर से टूट सकती है। मौजूदा हालात को देखते हुए, यह बात कुछ लोगों को सच लग रही है।


टिकट वितरण पर विवाद

कांग्रेस की हार के बाद, पार्टी के भीतर मतभेद खुलकर सामने आए हैं। बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने हार का दोष बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू और आरजेडी के रणनीतिकार संजय यादव पर डाला।


सिंह ने आरोप लगाया कि टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार तक कई गलत निर्णय लिए गए और स्थानीय नेताओं को नजरअंदाज कर बाहरी लोगों को पार्टी का नियंत्रण सौंप दिया गया। उन्होंने यह भी पूछा कि आखिर क्यों 'फ्रेंडली फाइट' जैसी स्थिति बनी?


असंतुष्ट नेताओं की आवाज़

पार्टी के भीतर एक और धड़ा है जो सुधार की मांग कर रहा है। शशि थरूर सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने हार के बाद कहा कि गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता है। थरूर ने सवाल उठाया कि क्या पार्टी की रणनीति, संदेश या संगठन में कोई कमी रह गई?


असंतोष की लहर अन्य राज्यों में भी

बिहार की हार के बाद, अन्य राज्यों के नेताओं ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त की। कांग्रेस नेता कृपानंद पाठक ने कहा कि जिम्मेदार लोगों ने वास्तविकता को छिपाया, जिससे पार्टी को नुकसान हुआ। पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार ने संगठनात्मक कमजोरी को मुख्य कारण बताया।


कांग्रेस में असहमति का इतिहास

कांग्रेस में असहमति कोई नई बात नहीं है। पार्टी के इतिहास में कई बड़े विभाजन हो चुके हैं।


1969: इंदिरा गांधी बनाम संगठन का टकराव


1978: प्रतीक विवाद और नया गुट


1999: शरद पवार, संगमा और तारिक अनवर द्वारा NCP का गठन


कुछ वर्ष पहले G23 समूह ने भी नेतृत्व और संगठन सुधार की मांग की थी, लेकिन ठोस बदलाव नहीं हो पाए।


क्या कांग्रेस फिर से टूटने जा रही है?

बिहार की हार ने कांग्रेस के सामने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिए हैं—नेतृत्व की भूमिका, संगठन में सक्रियता, पारदर्शिता और युवाओं को अवसर देने का मुद्दा फिर से उभरा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पार्टी समय रहते सुधार नहीं करती, तो भीतर का असंतोष एक बार फिर विभाजन का रूप ले सकता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस संकट से कैसे उबरती है और क्या वह सच में आत्ममंथन कर नई ऊर्जा प्राप्त कर पाएगी।