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दिल्ली-NCR में भूमि धंसाव: क्या है इसके पीछे की वजहें और भविष्य की चेतावनी?

दिल्ली-NCR में भूमि धंसाव की समस्या गंभीर होती जा रही है, जिससे लाखों लोगों की सुरक्षा खतरे में है। हालिया अध्ययन में बताया गया है कि दिल्ली में भूमि धंसने की दर 51 मिलीमीटर प्रति वर्ष तक पहुंच चुकी है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में स्थिति और भी भयावह हो सकती है। जानें इस संकट के पीछे के कारण, भविष्य की चेतावनी और संभावित समाधान के सुझाव।
 

दिल्ली में बढ़ता पर्यावरणीय संकट


नई दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र में पर्यावरणीय संकट गहराता जा रहा है। विशेषज्ञों ने इसे एक गंभीर आपदा की चेतावनी दी है। हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में यह सामने आया है कि दिल्ली में भूमि धंसाव की दर तेजी से बढ़ रही है, जो शहर की हजारों इमारतों और लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुकी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।


अध्ययन की चिंताजनक जानकारी

प्रसिद्ध नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली अन्य भारतीय शहरों की तुलना में सबसे तेजी से धंसने वाला शहर बन गया है। अध्ययन में बताया गया है कि यहां भूमि धंसने की दर 51 मिलीमीटर प्रति वर्ष तक पहुंच चुकी है, जिससे लगभग 17 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली की 2,264 इमारतें पहले से ही गंभीर संरचनात्मक खतरे में हैं। अध्ययन का शीर्षक था 'Building Damage Risk in Sinking Indian Megacities', जिसमें भूजल के अत्यधिक दोहन को इस समस्या का मुख्य कारण बताया गया है।


दिल्ली का स्थान और NCR क्षेत्र का खतरा

अध्ययन के अनुसार, दिल्ली भारत के पांच बड़े शहरों में तीसरे स्थान पर है, जहां भूमि धंसाव की समस्या सबसे अधिक है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 196.27 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र इस संकट से प्रभावित है। उपग्रह रडार तकनीक से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर के बिजवासन, फरीदाबाद और गाजियाबाद में भूमि क्रमशः 28.5 मिमी, 38.2 मिमी और 20.7 मिमी प्रति वर्ष की दर से धंस रही है।


भविष्य की चेतावनी

शोध में चेतावनी दी गई है कि अगले 30 वर्षों में दिल्ली में लगभग 3,169 इमारतें अत्यधिक जोखिम में होंगी, और अगले 50 वर्षों में यह संख्या बढ़कर 11,457 तक पहुंच सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भूजल का दोहन नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह संकट केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अन्य बड़े शहरों को भी प्रभावित करेगा।


भूमि धंसाव के प्रमुख कारण

शोध में बताया गया है कि दिल्ली में भूमि धंसने के तीन मुख्य कारण हैं: पहला, भूजल का अत्यधिक दोहन, जिसने जलोढ़ मिट्टी को कमजोर कर दिया है; दूसरा, मानसूनी वर्षा में अस्थिरता, जिससे एक्विफर पर दबाव बढ़ा है; और तीसरा, शहरीकरण और निर्माण कार्यों की तेज़ रफ्तार, जिसने भूमि की प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचाया है। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, वर्जीनिया टेक विश्वविद्यालय और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय, कनाडा के शोधकर्ताओं द्वारा 2015 से 2023 के बीच एकत्र किए गए उपग्रह आंकड़ों पर आधारित है।


समाधान के लिए सुझाव

शोधकर्ताओं ने कहा है कि पारंपरिक तकनीकों से भूमि धंसाव और इमारतों की क्षति का सही आकलन करना मुश्किल है। इसलिए, उन्होंने सुझाव दिया है कि एक समग्र और मानकीकृत डेटाबेस तैयार किया जाए, जिससे सरकारें समय पर नीतिगत निर्णय ले सकें। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, चरम मौसमी घटनाएं और भू-धंसाव एक साथ मिलकर भारत के शहरी बुनियादी ढांचे के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं। यदि अभी भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में दिल्ली जैसी महानगरों की नींव हिल सकती है।