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दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि के च्यवनप्राश विज्ञापन पर लगाया प्रतिबंध

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद के च्यवनप्राश विज्ञापन पर तीन दिनों के भीतर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया है। यह निर्णय डाबर इंडिया लिमिटेड की याचिका पर आया, जिसमें पतंजलि के विज्ञापन को 'धोखा' बताने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने सभी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से इस विज्ञापन को हटाने का निर्देश दिया है। जानें इस विवाद के पीछे की कहानी और अदालत के आदेश का महत्व।
 

पतंजलि को मिला बड़ा झटका

नई दिल्ली: योग गुरु बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि आयुर्वेद को दिल्ली उच्च न्यायालय से एक महत्वपूर्ण झटका लगा है। अदालत ने मंगलवार को पतंजलि के च्यवनप्राश के उस विवादास्पद विज्ञापन को तीन दिनों के भीतर बंद करने का आदेश दिया है, जिसमें अन्य च्यवनप्राश ब्रांडों को 'धोखा' बताया गया था। यह आदेश प्रतिद्वंद्वी कंपनी डाबर इंडिया लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर आया है।


कोर्ट का आदेश

जस्टिस तेजस करिया ने डाबर इंडिया लिमिटेड बनाम पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्णय सुनाया। उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों, ओवर द टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म और अन्य प्रसारकों को निर्देश दिया कि वे इस विज्ञापन को तीन दिनों के भीतर हटाएं, ब्लॉक करें या निष्क्रिय करें।


मामले का विवरण

क्या था पूरा मामला?
जस्टिस करिया ने कहा, “प्रतिवादी (पतंजलि) को राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों, ओटीटी प्लेटफॉर्म, प्रिंट मीडिया और इंटरनेट पर सभी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से विवादास्पद विज्ञापन को हटाने का आदेश दिया गया है।” डाबर इंडिया की याचिका में पतंजलि के हालिया टीवी विज्ञापन को 'अपमानजनक और अनुचित' बताया गया था। इसमें बाबा रामदेव उपभोक्ताओं को चेतावनी देते हुए दिखाई दे रहे थे कि च्यवनप्राश के नाम पर अधिकांश लोगों को ठगा जा रहा है।


डाबर का आरोप

डाबर ने आरोप लगाया कि यह विज्ञापन जानबूझकर उसके प्रमुख उत्पाद 'डाबर च्यवनप्राश' को बदनाम करता है, जो 1949 से बाजार में 61% से अधिक की हिस्सेदारी रखता है। डाबर ने यह भी कहा कि पतंजलि का यह संदेश संपूर्ण च्यवनप्राश श्रेणी का अपमान है, जिससे आयुर्वेद-आधारित हेल्थ सप्लीमेंट पर लोगों का विश्वास कम होता है। इन तर्कों पर विचार करते हुए, उच्च न्यायालय ने पहले ही यह माना कि यह विज्ञापन च्यवनप्राश उत्पादों की श्रेणी का अपमान करने का प्रयास है।