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पंढरपुरी भैंस: डेयरी फार्मिंग की चमकती सितारा

पंढरपुरी भैंस, महाराष्ट्र की एक विशेष नस्ल है, जो डेयरी फार्मिंग में किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है। यह भैंस औसतन 1790 लीटर दूध देती है, जिसमें वसा की मात्रा 8.01% होती है। इसकी पहचान इसकी लंबी, घुमावदार सींगों और उच्च गुणवत्ता वाले दूध के लिए होती है। जानें इसके पालन-पोषण के तरीके और इसकी विशेषताओं के बारे में।
 

पंढरपुरी भैंस: डेयरी फार्मिंग का अनमोल रत्न

पंढरपुरी भैंस, जो महाराष्ट्र की एक विशेष देसी नस्ल है, अब किसानों के लिए डेयरी फार्मिंग में एक प्रमुख विकल्प बनती जा रही है। इसकी पहचान इसकी लंबी, घुमावदार सींगों और उच्च वसा वाले दूध के लिए होती है।


एक ब्यांत में यह औसतन 1790 लीटर दूध देती है, जिससे यह बाजार में एक विशेष स्थान प्राप्त करती है। यह नस्ल सांगली, सोलापुर और कोल्हापुर जैसे क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय है। आइए, इस भैंस की विशेषताओं, पहचान और देखभाल के बारे में विस्तार से जानते हैं।


पंढरपुरी भैंस की विशेष पहचान

पंढरपुरी भैंस का नाम सोलापुर के पंढरपुर से लिया गया है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसकी लंबी, घुमावदार सींगें हैं, जो तीन प्रकार की होती हैं: भक्करड (पीछे और ऊपर मुड़ी), टोकी (बाहर की ओर घूमी), और मेरी (नीचे की ओर सीधी)। यह भैंस सामान्यतः काले रंग की होती है, लेकिन इसके माथे, पैरों और पूंछ पर सफेद निशान भी होते हैं।


इसका औसत कद 130 सेमी और वजन 416 किलोग्राम होता है। बछड़े का जन्म वजन 25.6 किलोग्राम होता है। यह नस्ल गर्म और शुष्क जलवायु में आसानी से अनुकूलित हो जाती है, जो इसे डेयरी फार्मिंग के लिए आदर्श बनाती है।


दूध उत्पादन और गुणवत्ता

पंढरपुरी भैंस का दूध उत्पादन इसकी सबसे बड़ी ताकत है। यह एक ब्यांत में औसतन 1790.6 लीटर दूध देती है, जिसमें वसा की मात्रा 8.01% होती है, जो डेयरी उत्पादों के लिए अत्यंत लाभकारी है। इस कारण से, इसका दूध बाजार में अच्छे दामों पर बिकता है।


किसान इस भैंस का दूध ग्राहकों के सामने निकालते हैं, जो 30-40 मिनट की प्रक्रिया में होता है, जिससे ताजगी का भरोसा मिलता है। यह नस्ल मध्यम दूध उत्पादन के साथ उच्च गुणवत्ता प्रदान करती है, जो डेयरी फार्मिंग में मुनाफा बढ़ाने में सहायक होती है।


पालन-पोषण और देखभाल

पंढरपुरी भैंस का पालन-पोषण परंपरागत पशुपालक जैसे जोशी और गवली करते हैं। यह नस्ल इंटेंसिव सिस्टम में पाली जाती है, जिसमें नियंत्रित चारा दिया जाता है। इन भैंसों को फसल अवशेष, हरा चारा, गेहूं की भूसी, मक्का, और सरसों की खली खिलाई जाती है।


दूध देने से पहले इन्हें अच्छा चारा दिया जाता है ताकि वे शांत रहें। यह नस्ल कम संसाधनों में भी अच्छा प्रदर्शन करती है। किसानों को सलाह दी जाती है कि नियमित स्वास्थ्य जांच और उचित देखभाल से इसकी उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।