बिहार की राजनीति में कांग्रेस और आरजेडी के बीच बढ़ती दरार: क्या होगा आगे?
पटनाः बिहार में गठबंधन पर घमासान
बिहार की राजनीतिक स्थिति एक बार फिर गठबंधन के मुद्दे पर गरमा गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद खान, जो कटिहार जिले के कड़वा से पूर्व विधायक हैं, ने महागठबंधन के भीतर हलचल मचा दी है। उनका कहना है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के साथ गठबंधन ने कांग्रेस को कोई ठोस चुनावी लाभ नहीं पहुंचाया, बल्कि पार्टी को नुकसान ही उठाना पड़ा। इस पर आरजेडी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
कांग्रेस को स्वतंत्र पहचान की आवश्यकता
खान ने स्पष्ट रूप से कहा कि कांग्रेस को बिहार में अपनी अलग राजनीतिक पहचान स्थापित करनी चाहिए। उनके अनुसार, आरजेडी के साथ गठबंधन के कारण कांग्रेस न तो विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़ा सकी और न ही जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत कर पाई। उन्होंने कहा कि गठबंधन के चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति बनी रही और कांग्रेस की भूमिका सीमित हो गई। खान का मानना है कि पार्टी नेतृत्व को इस पूरे प्रयोग पर गंभीर आत्ममंथन करना चाहिए।
सीट बंटवारे और रणनीति पर उठे सवाल
खान ने आरोप लगाया कि आरजेडी ने कांग्रेस को सीट बंटवारे और चुनावी रणनीति में हाशिये पर रखा। उनका कहना है कि कांग्रेस की बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया, जिससे पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा। उल्लेखनीय है कि शकील अहमद खान खुद हालिया विधानसभा चुनाव में जेडीयू के दुलल चंद्र गोस्वामी से हार गए थे।
चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसे केवल छह सीटों पर जीत मिली। इनमें से चार सीटें सीमांचल क्षेत्र की थीं, जिसे कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है। वर्तमान में सीमांचल से कांग्रेस के दो सांसद और चार विधायक हैं, जबकि आरजेडी इस क्षेत्र में केवल एक विधानसभा सीट जीत पाई और उसका कोई सांसद नहीं है। इन आंकड़ों ने कांग्रेस के भीतर गठबंधन को लेकर असंतोष को और बढ़ा दिया है।
महागठबंधन की हार के बाद का मूड
पार्टी सूत्रों के अनुसार, बिहार में महागठबंधन की हार के बाद दिल्ली में हुई समीक्षा बैठक में कांग्रेस नेताओं ने एक सुर में आरजेडी के साथ गठबंधन जारी रखने का विरोध किया। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि अगर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती, तो उसकी सीटों की संख्या बेहतर हो सकती थी। उनका यह भी तर्क है कि बिहार में आरजेडी की छवि अब एक सीमित सामाजिक आधार वाली पार्टी के रूप में बनती जा रही है।
AIMIM को बाहर रखने पर विवाद
कांग्रेस के कुछ नेताओं ने यह भी कहा कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) को गठबंधन से बाहर रखने का खामियाजा पार्टी को सीमांचल में भुगतना पड़ा। उनके अनुसार, कड़वा और कस्बा जैसी महत्वपूर्ण सीटें इसी वजह से हाथ से निकल गईं। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस AIMIM को गठबंधन में शामिल करना चाहती थी, लेकिन आरजेडी नेता तेजस्वी यादव इसके खिलाफ थे।
आरजेडी की प्रतिक्रिया
इन बयानों पर आरजेडी ने पलटवार किया है। आरजेडी नेता अरुण कुमार ने कहा कि गठबंधन के लिए पहल कांग्रेस की ओर से ही हुई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हर पार्टी को अपने फैसले लेने की स्वतंत्रता है और यदि कांग्रेस बिहार में अकेले चुनाव लड़ना चाहती है, तो वह ऐसा कर सकती है।
आगे का रास्ता
कांग्रेस और आरजेडी के बीच बढ़ती तल्खी ने बिहार की राजनीति में नए समीकरणों के संकेत दे दिए हैं। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस वास्तव में स्वतंत्र रास्ता अपनाती है या फिर किसी नए गठबंधन की तलाश करती है।