बिहार विधानसभा चुनाव 2025: एनडीए में सीट बंटवारे पर उठे सवाल, उपेंद्र कुशवाहा ने दी प्रतिक्रिया
एनडीए सीट बंटवारे पर स्थिति स्पष्ट नहीं
एनडीए सीट शेयरिंग: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीटों के बंटवारे पर अभी तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। बीजेपी ने दावा किया है कि सीटों का फॉर्मूला लगभग तैयार है और आज शाम को इसकी आधिकारिक घोषणा की जाएगी। लेकिन इसी बीच, सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने इस दावे को चुनौती दी है।
बातचीत का दौर जारी
उपेंद्र कुशवाहा ने शनिवार सुबह एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि सीटों पर बातचीत अभी पूरी नहीं हुई है। उन्होंने लिखा, “इधर-उधर की खबरों पर मत जाइए। वार्ता अभी पूरी नहीं हुई है। इंतजार कीजिए! मीडिया में कैसे खबर चल रही है, मुझे नहीं पता। अगर कोई खबर प्लांट कर रहा है तो यह छल है, धोखा है। आप लोग सजग रहिए।” उनका यह बयान यह दर्शाता है कि एनडीए के भीतर अभी भी सीट बंटवारे को लेकर कई मुद्दे अनसुलझे हैं।
बीजेपी का आधिकारिक बयान
बीजेपी के बिहार अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने शुक्रवार रात पटना में मीडिया से कहा कि घटक दलों के बीच सीटों का प्रारंभिक फॉर्मूला लगभग तय हो चुका है। उन्होंने बताया कि शनिवार को दिल्ली में प्रदेश भाजपा के कोर ग्रुप की बैठक होगी और उसके बाद शाम तक दिल्ली या पटना से सीट शेयरिंग फॉर्मूला का औपचारिक ऐलान किया जाएगा।
सीटों का संभावित बंटवारा
सूत्रों के अनुसार, एनडीए में अब तक हुई वार्ताओं में एक प्रस्ताव सामने आया है जिसमें कहा गया है कि भाजपा और जदयू मिलकर 200 से 203 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। इस तरह उनके पास अधिकांश सीटें रहेंगी। बाकी 40–42 सीटें अन्य सहयोगी दलों को दी जाएंगी। इस प्रस्ताव में निम्न बंटवारे का सुझाव है:
- लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 26 सीटें
- हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HMA) को 8 सीटें
- राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) को 6 सीटें
हालांकि, यह संभावित बंटवारा अभी तक औपचारिक नहीं हुआ है और कुशवाहा जैसे सहयोगियों की नाराजगी ने इसे जल्द घोषित करना मुश्किल बना दिया है।
राजनीतिक संतुलन की चुनौती
इस पूरे मामले में बीजेपी और जदयू को यह संतुलन बनाना है कि वे बहुमत वाली सीटें हासिल करें और साथ ही सहयोगियों की संवेदनशील इच्छाओं का भी सम्मान करें। उपेंद्र कुशवाहा की मांगों और सहयोगी दलों की नाराज़गी के कारण यह प्रक्रिया और जटिल हो गई है।
बीजेपी के पास समय कम है क्योंकि नामांकन की तारीखें नजदीक हैं और गठबंधन को प्रभावी और समरस उम्मीदवारों को मैदान में उतारना होगा। यदि सीट बंटवारा देर से होता है, तो विरोधी महागठबंधन को इसका राजनीतिक लाभ मिल सकता है।