बिहार विधानसभा चुनाव 2025: रिकॉर्ड मतदान के पीछे की वजहें क्या हैं?
बिहार में मतदान का उत्साह
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मतदाताओं ने अभूतपूर्व उत्साह और जोश के साथ मतदान किया है। पहले और दूसरे चरण में मतदान का प्रतिशत अब तक के सभी चुनावों से अधिक रहा है। 6 नवंबर को पहले चरण में 121 सीटों पर 64.66% वोटिंग हुई, जबकि 11 नवंबर को दूसरे चरण में 122 सीटों पर शाम 6 बजे तक 68.52% लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इस बार बंपर वोटिंग के बाद यह सवाल उठता है कि आखिर क्या कारण रहे कि बिहार के लोग इतनी बड़ी संख्या में मतदान करने निकले?
बिहार के चुनावी इतिहास में बदलाव
बिहार के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो 1952 में पहले विधानसभा चुनाव में केवल 35% वोटिंग हुई थी। 1960 के दशक तक यह आंकड़ा 40-45% के बीच रहा। 1990 के दशक में अपराध और जातीय हिंसा के कारण यह आंकड़ा घटा, लेकिन 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद इसमें सुधार देखने को मिला। 2010 में 57%, 2015 में 56.77% और 2020 में 57.29% मतदान हुआ, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में हुई वोटिंग ने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण माने जा रहे हैं।
मतदान के प्रमुख कारण
1. छठ पर्व का प्रभाव: छठ पूजा के तुरंत बाद चुनाव की तारीखें पड़ने से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांवों में मौजूद थे। दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों से लौटे लाखों लोगों ने न केवल पूजा में भाग लिया, बल्कि मतदान में भी सक्रियता दिखाई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह छठ-चुनाव समीकरण का प्रभाव है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इसे परिवर्तन की लहर बताया है।
2. मुस्लिम मतदाताओं की सक्रियता: राज्य की 17% मुस्लिम आबादी ने इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कहा जा रहा है कि इस समुदाय ने एनडीए को सत्ता से बाहर करने के लिए एकजुट होकर वोट डाला। सीएए-एनआरसी जैसे मुद्दों और वक्फ कानून में बदलाव की आशंकाओं ने उनमें असुरक्षा की भावना पैदा की। इस कारण अधिकांश मुस्लिम मतदाता महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) के पक्ष में जुट गए।
3. मतदाता सूची की सफाई (SIR): चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) मुहिम ने भी बड़ा फर्क डाला। आयोग ने मृत, डुप्लीकेट और प्रवासी नाम हटाकर मतदाता सूची को सटीक बनाया। इससे वोटिंग प्रतिशत स्वाभाविक रूप से बढ़ गया। करीब 65 लाख पुराने नाम हटाए गए और 21 लाख नए मतदाता जोड़े गए।
4. चुनाव आयोग के सुधार: इस बार आयोग ने मतदान प्रक्रिया को और सरल बनाया। वेबकास्टिंग, वोटर हेल्पलाइन ऐप, मोबाइल वोटिंग यूनिट जैसी तकनीक से पारदर्शिता बढ़ी। बूथ स्तर पर चेहरा पहचान तकनीक और QR स्लिप्स ने फर्जी मतदान को रोका। साथ ही पुलिस की सख्ती और शांतिपूर्ण माहौल ने लोगों में विश्वास जगाया।
5. महिलाओं की बढ़ी भागीदारी: पहले चरण में महिलाओं की वोटिंग दर पुरुषों से 5-7% अधिक रही है। यह केवल योजनाओं का परिणाम नहीं, बल्कि शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान के प्रति बढ़ती जागरूकता का प्रतीक है। नीतीश कुमार की महिला सशक्तिकरण नीतियों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुल मिलाकर, 2025 का बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक भागीदारी, सांस्कृतिक जुड़ाव और सामाजिक जागरूकता का उत्सव बन गया है.