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बिहार विधानसभा चुनाव: राजनीतिक दलों की सक्रियता और महिला मतदाताओं पर ध्यान

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी जोरों पर है, जहां राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ अपना रहे हैं। सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष दोनों ही अपने वादों और योजनाओं के माध्यम से जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की घोषणा की है, जबकि तेजस्वी यादव ने वित्तीय सहायता का वादा किया है। इस चुनावी मुकाबले में युवाओं और पेंशन योजनाओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है। जानें इस चुनावी हलचल के बारे में और क्या-क्या हो रहा है।
 

बिहार में चुनावी हलचल

बिहार में विधानसभा चुनावों की तैयारी के साथ राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। अगले दो महीनों में होने वाले चुनावों के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियों को सक्रिय कर दिया है। सत्ताधारी पार्टी अपने कार्यों और योजनाओं के माध्यम से जनता का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है, जबकि विपक्ष बड़े वादों के सहारे मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटा है.


महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दल एक आक्रामक रणनीति अपना रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 'माई-बहिन मान योजना' की घोषणा की है, जिसमें उन्होंने वादा किया है कि यदि उनकी सरकार बनती है, तो राज्य की महिलाओं को हर महीने ₹2,500 की सहायता दी जाएगी। इसी क्रम में कांग्रेस भी सक्रिय हो गई है, जिसके कार्यकर्ता महिलाओं के बीच राहुल गांधी की तस्वीर वाले सैनिटरी नैपकिन वितरित कर रहे हैं, ताकि महिलाओं से भावनात्मक जुड़ाव बनाया जा सके.


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनावी मैदान में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35% डोमिसाइल आरक्षण देने का निर्णय लिया है। यह आरक्षण अब राज्य की सभी सरकारी नौकरियों पर लागू होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम नीतीश कुमार का एक मास्टरस्ट्रोक है, जो महिला मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है.


रोजगार के मुद्दे पर भी सत्तापक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं। तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियों का वादा किया है, जबकि नीतीश सरकार ने हाल ही में 'युवा आयोग' की स्थापना की घोषणा की है, जो युवाओं को निजी क्षेत्र में रोजगार दिलाने में मदद करेगा. सरकार का दावा है कि 2020 के बाद से 10 लाख से अधिक सरकारी नौकरियां दी जा चुकी हैं और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लगभग 34 लाख युवाओं को रोजगार मिला है.


नीतीश कुमार की सरकार ने वृद्ध, विधवा और दिव्यांग नागरिकों के लिए सामाजिक पेंशन योजनाओं में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। पेंशन की राशि को तीन गुना तक बढ़ा दिया गया है, जिससे विपक्ष की पेंशन संबंधी घोषणाओं का प्रभाव कम होता दिखाई दे रहा है.


बिहार की राजनीति में फिलहाल दो प्रमुख धाराएं उभरकर सामने आई हैं—एक ओर अनुभव और योजनाओं पर भरोसा, और दूसरी ओर बदलाव के वादे। नीतीश कुमार की नीतिगत घोषणाएं और तेजस्वी यादव की जनाकर्षक योजनाएं, दोनों ही मतदाताओं को रिझाने की पूरी कोशिश कर रही हैं। चुनावी मुकाबला दिलचस्प होने वाला है, लेकिन अंतिम निर्णय बिहार की जनता के हाथों में होगा.