राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा: चुनावी हार और भविष्य की चुनौतियाँ
बिहार चुनाव के बाद राहुल गांधी की स्थिति
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद, कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी की चुनावी प्रदर्शन पर चर्चा तेज हो गई है। कांग्रेस हार का कारण 'वोटचोरी' बता रही है, जबकि विपक्ष का कहना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने लगभग सौ चुनावों में हार का सामना किया है। इन दावों की सच्चाई को समझने के लिए राहुल गांधी की राजनीतिक यात्रा पर ध्यान देना आवश्यक है।
राहुल गांधी का राजनीतिक सफर
राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी से लोकसभा में कदम रखा और तीन साल बाद उन्हें महासचिव बनाया गया। इस दौरान उन्होंने यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई को नए सिरे से ढालने का प्रयास किया। 2013 में उन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया और 2014 के लोकसभा चुनाव में वह कांग्रेस के प्रमुख चेहरे बने। 2017 में पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद, 2019 की हार के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया। अब 2024 में वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में लौटने की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से राष्ट्रीय राजनीति तक
राजनीति में अपने शुरुआती वर्षों में, राहुल गांधी की रणनीति मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश पर केंद्रित रही। 2007 के विधानसभा चुनाव से उन्होंने चुनावी अभियान को सक्रिय रूप से दिशा दी। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को यूपी से 21 सीटें मिलीं, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चौथे स्थान पर खिसक गई।
चुनौतियों से भरा दशक
विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का असली चुनावी रिपोर्ट कार्ड 2014 से शुरू हुआ, जब कांग्रेस केवल 44 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद कई राज्यों में पार्टी को लगातार हार का सामना करना पड़ा।
राहुल गांधी के समर्थकों का कहना है कि यूपीए सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का असर उनके राजनीतिक करियर पर पड़ा। उन्हें वंशवाद का प्रतीक माना गया और उनकी क्षमताओं पर सवाल उठाए गए। पार्टी की आंतरिक गुटबाजी ने भी स्थिति को और जटिल बना दिया।
कितने चुनाव जीते और कितने हारे?
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 3 लोकसभा और 74 विधानसभा चुनाव लड़े हैं। इनमें से 63 चुनावों में हार और केवल 9 में जीत मिली। 7 चुनाव ऐसे थे जहां कांग्रेस गठबंधन की जूनियर पार्टनर थी। कुल मिलाकर, पार्टी लगभग 80% चुनावों में असफल रही है।
भविष्य की चुनौतियाँ
2024 के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में अपेक्षित नतीजों ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया। दिल्ली में लगातार तीसरी बार पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी। हालांकि झारखंड और जम्मू कश्मीर में गठबंधन को सफलता मिली, लेकिन यहां भी कांग्रेस की भूमिका छोटी रही।
अब कांग्रेस वोटचोरी का आरोप लगाकर मैदान में डटी हुई है, लेकिन बिहार के नतीजों ने पार्टी की रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी अपनी राजनीतिक दिशा में बदलाव करते हैं या मौजूदा रुख को जारी रखते हैं।