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84 कोस परिक्रमा: पापों से मुक्ति का मार्ग

84 कोस परिक्रमा एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है जो भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है। यह यात्रा ब्रजमंडल क्षेत्र में होती है, जहां भक्तों का मानना है कि इससे पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह यात्रा कब की जाती है, इसका महत्व क्या है, और इसे कैसे किया जाता है। जानें इस यात्रा से जुड़ी खास बातें और इसके लाभ।
 

भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी यात्रा


ब्रजमंडल क्षेत्र की यात्रा
ब्रजमंडल वह पवित्र भूमि है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अनेक बाल लीलाएं की हैं। इसमें वृंदावन, मथुरा, गोकुल, नंदगांव, बरसाना और गोवर्धन जैसे स्थान शामिल हैं, जो 84 कोस की परिक्रमा का हिस्सा हैं। वेदों और पुराणों में इन स्थलों का विशेष महत्व बताया गया है।


यात्रा का महत्व


वराह पुराण के अनुसार, पृथ्वी पर लगभग 66 अरब तीर्थ हैं, जो चातुर्मास के दौरान ब्रज में निवास करते हैं। इसलिए, इस समय 84 कोस की परिक्रमा करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि एक बार मैया यशोदा और नंद बाबा ने चार धाम यात्रा की इच्छा व्यक्त की थी।


मोक्ष की प्राप्ति


मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से 84 कोस की परिक्रमा करता है, उसे 84 लाख योनियों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस यात्रा के दौरान व्यक्ति के सभी पाप भी समाप्त हो जाते हैं।


यात्रा का समय


मुख्य रूप से, 84 कोस की परिक्रमा अधिकमास और चातुर्मास में की जाती है। इसके अलावा, चैत्र और वैशाख के महीनों में भी इसका विशेष महत्व है। यह यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक होती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के बाद भी परिक्रमा करते हैं।


यात्रा के तरीके


84 कोस की परिक्रमा पैदल या वाहन से की जा सकती है, लेकिन अधिकतर लोग इसे पैदल करना पसंद करते हैं। इस यात्रा को पैदल पूरा करने में एक महीने या उससे अधिक समय लग सकता है। यात्रा की समाप्ति उसी स्थान पर होती है, जहां से इसकी शुरुआत की गई थी। इस परिक्रमा के दौरान भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़े लगभग 1100 सरोवर और 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत आदि आते हैं।