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अंबाला में अहोई अष्टमी 2025: चंद्रमा के निकलने का समय और पूजा का महत्व

अंबाला में अहोई अष्टमी 2025 का पर्व माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन माताएं देवी पार्वती के स्वरूप की पूजा करती हैं और संतान की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। जानें इस पर्व का चंद्रमा निकलने का समय, पूजा का शुभ मुहूर्त और इसके धार्मिक महत्व के बारे में।
 

अंबाला में अहोई अष्टमी का उत्सव

Ahoi Ashtami 2025 Ambala mein chand kab nikalega: अंबाला में अहोई अष्टमी के पर्व को लेकर माताओं में विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है। इस दिन माताएं देवी पार्वती के एक रूप, अहोई माता की पूजा करती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र, सुख और समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। शाम को तारे देखकर पूजा की जाती है और फिर व्रत खोला जाता है। यह व्रत न केवल संतान की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि निसंतान दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति की कामना को पूरा करने वाला माना जाता है। आइए, वृंदावन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानें कि 2025 में अहोई अष्टमी कब है, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है और इसका महत्व क्या है।


अहोई अष्टमी 2025 की तिथि

2025 में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पड़ रही है।


अष्टमी तिथि शुरू: 12 अक्टूबर 2025, रविवार को रात 08:04 बजे से।


अष्टमी तिथि समाप्त: 13 अक्टूबर 2025, सोमवार को रात 08:03 बजे।


हिंदू धर्म में व्रत उदया तिथि में ही रखा जाता है, इसलिए 13 अक्टूबर को ही अहोई अष्टमी का व्रत होगा। इस दिन तारे देखकर चंद्रमा की पूजा भी की जाएगी।


तारे देखने और पूजा का शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी के दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला उपवास रखती हैं और शाम को तारे देखकर व्रत खोलती हैं। तारे देखने का शुभ समय इस प्रकार है:


तारे देखने का मुहूर्त: 13 अक्टूबर 2025, शाम 06:05 बजे से।


चंद्रोदय का समय: 13 अक्टूबर 2025, रात 11:20 बजे।


चंद्रास्त का समय: 14 अक्टूबर 2025, दोपहर में।


चंद्रोदय के समय को देखते हुए, चंद्रमा की पूजा और चंद्र अर्घ्य का शुभ मुहूर्त रात 11:40 बजे है। इस समय चंद्रमा की पूजा करना सबसे उत्तम रहेगा।


अहोई अष्टमी 2025 के अन्य शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी के दिन कुछ और शुभ मुहूर्त भी हैं, जिनमें पूजा, दान-धर्म या विशेष उपाय किए जा सकते हैं:


पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 05:59 बजे से 07:14 बजे तक।


अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:44 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक।


ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:40 बजे से 05:30 बजे तक।


अभिजीत मुहूर्त में सामान्य पूजा या संतान से जुड़े विशेष कार्य किए जा सकते हैं। वहीं, ब्रह्म मुहूर्त दान के लिए सबसे शुभ माना जाता है।


अहोई अष्टमी का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य के लिए रखा जाता है। माताएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे उनके बच्चों पर आने वाली सभी मुसीबतें दूर होती हैं और उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर जाता है।


निसंतान दंपतियों के लिए यह व्रत संतान प्राप्ति की कामना को पूरा करने वाला माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत परिवार में शांति, सौभाग्य और धन-धान्य की वृद्धि करता है। अहोई माता का आशीर्वाद न केवल संतान को सुरक्षित रखता है, बल्कि पूरे परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह व्रत माता और संतान के बीच के पवित्र रिश्ते को और मजबूत करता है।