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अहमदाबाद विमान हादसे में मां की अद्भुत बहादुरी की कहानी

12 जून को अहमदाबाद में एयर इंडिया IC171 विमान के हादसे ने 260 लोगों की जान ली, लेकिन एक मां की बहादुरी ने सबका दिल जीत लिया। मनीषा कछाड़िया ने अपने बेटे ध्यांश को आग से बचाने के लिए खुद को ढाल बना लिया और उसके इलाज के लिए अपनी त्वचा दान की। जानें इस प्रेरणादायक कहानी के बारे में, जिसमें ममता और संघर्ष की अद्भुत मिसाल है।
 

एक त्रासदी में ममता की मिसाल

12 जून की रात को अहमदाबाद में एयर इंडिया IC171 विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। इस हादसे में 260 लोगों की जान गई, लेकिन इस बीच एक मां की अद्भुत साहस की कहानी सामने आई, जिसने सभी के दिलों को छू लिया। आठ महीने के ध्यांश को आग से बचाने के लिए उसकी मां ने खुद को ढाल बना लिया और बाद में उसके इलाज के लिए अपनी त्वचा भी दान की।


मां की बहादुरी की कहानी

मनीषा कछाड़िया, जो बीजे मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंशियल क्वार्टर्स में अपने बेटे ध्यांश के साथ रह रही थीं, हादसे की रात अपने फ्लैट में थीं। उनके पति, डॉ. कपिल कछाड़िया, यूरोलॉजी में सुपर-स्पेशियलिटी कर रहे हैं। जब विमान उनके फ्लैट से टकराया, तो चारों ओर आग और धुआं फैल गया। मनीषा ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने बेटे को उठाया और जलती हुई इमारत से बाहर निकलने की कोशिश की। धुएं और लपटों के बीच उन्होंने अपने शरीर से बेटे को ढक लिया, जिससे वह आंशिक रूप से बच पाया। मनीषा के चेहरे और हाथों में 25% और ध्यांश के शरीर के कई हिस्सों में 36% तक जलन हुई।


अस्पताल में मां का साहस

अस्पताल में मां ने फिर दिखाई बहादुरी

दोनों को अहमदाबाद के केडी अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि ध्यांश की स्थिति गंभीर थी, उसे वेंटिलेटर, खून चढ़ाना और पीआईसीयू में चौबीसों घंटे निगरानी की आवश्यकता थी। उसका एक फेफड़ा भी काम नहीं कर रहा था, जिसके लिए एक विशेष ट्यूब लगानी पड़ी। जब डॉक्टरों ने बताया कि उसके जलन के इलाज के लिए त्वचा की आवश्यकता होगी, तो मनीषा ने तुरंत अपनी त्वचा दान करने की पेशकश की।


नई जिंदगी की शुरुआत

मां-बेटे की नई जिंदगी की शुरुआत

डॉ. रुतविज परिख की अगुवाई में प्लास्टिक सर्जरी टीम ने त्वचा प्रत्यारोपण की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया। डॉक्टरों के अनुसार, मां और बेटे दोनों की त्वचा के उपयोग से संक्रमण और अस्वीकार की संभावना कम हो गई। इलाज में डॉ. अदित देसाई, डॉ. स्नेहल पटेल, डॉ. तुषार पटेल और डॉ. मानसी डंडनाइक की टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पांच हफ्तों के गहन इलाज के बाद अब मां और बेटा दोनों घर लौट आए हैं। डॉक्टरों का कहना है कि शरीर के घाव समय के साथ ठीक हो जाएंगे, लेकिन यह ममता और संघर्ष की कहानी लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी।