आंध्र प्रदेश का द्वारका तिरुमला मंदिर: आध्यात्मिक शांति का केंद्र
द्वारका तिरुमला मंदिर की विशेषताएँ
नई दिल्ली - दक्षिण भारत के अधिकांश मंदिर भगवान मुरुगन और भगवान विष्णु को समर्पित हैं, जबकि भगवान शिव और पार्वती के लिए भी कई मंदिर हैं। हालांकि, भगवान मुरुगन और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की पूजा सबसे अधिक की जाती है। आंध्र प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है और इसकी वास्तुकला और स्थान अत्यंत आकर्षक हैं।
मंदिर का स्थान और पहुंच
द्वारका तिरुमला मंदिर आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में एलुरु के निकट एक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए कई सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जैसे कि पास में रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड। एलुरु शहर से 42 किलोमीटर की दूरी पर रेलवे जंक्शन है, और भीमाडोले की दिशा से आने पर यह केवल 15 किलोमीटर दूर है। भक्त सीढ़ियों के माध्यम से मंदिर तक पहुँचते हैं, जो आध्यात्मिक शांति का एक प्रमुख केंद्र है।
मंदिर की स्थापना की कहानी
मंदिर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि महान ऋषि 'द्वारका' ने वर्षों तक भगवान विष्णु की पूजा की थी, जिसके बाद वहाँ भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा प्रकट हुई। 11वीं शताब्दी में म्यावलवरम जमींदारों ने इस मंदिर का निर्माण कराया। यहाँ भगवान वेंकटेश्वर भक्तों को दर्शन देते हैं और उनकी सभी इच्छाएँ पूरी करते हैं। भक्तों के बीच उन्हें कलियुग वैकुंठ वास के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर की सुविधाएँ और सेवाएँ
द्वारका तिरुमला मंदिर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है, जहाँ भगवान विष्णु को प्रिय वस्तुएँ रखी जाती हैं। यहाँ बाग-बगीचे, गौवंश की प्रतिमा, और भगवान श्री कृष्ण की बाल रूप की प्रतिमा भी देखने को मिलती है। भक्तों के लिए विभिन्न सेवाएँ उपलब्ध हैं, जैसे सुप्रभात सेवा, अस्तोत्तारा सतानामार्चना, और नित्या अर्जिता कल्याणम, जिनका शुल्क निर्धारित है। सुप्रभात सेवा और अस्तोत्तारा सतानामार्चना के लिए 300 रुपए और नित्या अर्जिता कल्याणम के लिए 2000 रुपए का भुगतान करना होता है।
पर्यटन स्थल
मंदिर के आसपास कई दर्शनीय स्थल भी हैं, जहाँ पर्यटक जा सकते हैं। मंदिर के 35 किलोमीटर के दायरे में श्री कुंकुलम्मा वारी मंदिर, श्री संतान वेणुगोपाल जगन्नाध स्वामी मंदिर, और श्री अंजनेय तथा श्री सुब्रह्मण्येश्वर स्वामीवर्ला मंदिर स्थित हैं।