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इंदिरा एकादशी और द्वादशी श्राद्ध का महत्व और विधि

इस लेख में इंदिरा एकादशी और द्वादशी श्राद्ध के महत्व और विधि के बारे में जानकारी दी गई है। जानें इस दिन के विशेष अनुष्ठानों और शुभ मुहूर्त के बारे में, जिससे आप अपने पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।
 

इंदिरा एकादशी और द्वादशी श्राद्ध का दिन

नई दिल्ली: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन द्वादशी श्राद्ध के साथ-साथ इंदिरा एकादशी का पारण भी किया जाएगा। इस समय सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में स्थित रहेंगे। दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:50 बजे से शुरू होकर 39 मिनट तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय दोपहर 12:15 बजे से 1:47 बजे तक रहेगा।


द्वादशी तिथि 17 सितंबर की रात 11:39 बजे से शुरू होकर 18 सितंबर की सुबह 11:24 बजे तक रहेगी। इसके बाद त्रयोदशी तिथि का आरंभ होगा, इसलिए द्वादशी श्राद्ध गुरुवार को ही किया जाएगा।


पुराणों के अनुसार, द्वादशी श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि पर हुई हो या जिन्होंने अपने जीवन में संन्यास लिया हो। इसे 'संन्यासी श्राद्ध' भी कहा जाता है, क्योंकि यह संन्यासियों के श्राद्ध का दिन है। इस श्राद्ध को करने से धन, स्वास्थ्य, विजय और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।


पितृ पक्ष में पार्वण श्राद्ध के लिए कुतुप और रौहिण मुहूर्त को शुभ माना जाता है। श्राद्ध के अनुष्ठान अपराह्न तक पूरे कर लेने चाहिए और अंत में तर्पण किया जाता है, जिससे पितरों को शांति और तृप्ति मिलती है।


श्राद्ध करने के लिए घर की सफाई करें और गंगाजल तथा गौमूत्र से शुद्ध करें। तर्पण दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके करें। घर के आंगन में रंगोली बनाएं और पितरों के लिए शुद्ध भोजन तैयार करें। पहले अपने मान या ब्राह्मणों को निमंत्रण दें और उन्हें भोजन कराएं। इसके बाद दक्षिणा और सामग्री का दान करें, जिसमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण आदि शामिल हैं। श्राद्ध में सफेद फूलों का उपयोग करें। दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े और तिल का विशेष महत्व है।


एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। यदि आप तिथि के बाद व्रत तोड़ते हैं, तो उसका कोई महत्व नहीं रह जाता। पारण सूर्योदय के बाद और द्वादशी तिथि खत्म होने से पहले करना चाहिए। व्रत तोड़ने का सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल है, लेकिन यदि यह संभव न हो तो मध्याह्न के बाद भी पारण किया जा सकता है। कभी-कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए होता है, जिसमें स्मार्त परिवार के लोग पहले दिन और संन्यासी मोक्ष की इच्छा रखने वाले लोग दूसरे दिन व्रत करते हैं।