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कच्चा दूध: शिवलिंग पर चढ़ाने का रहस्य

इस लेख में हम जानेंगे कि कच्चा दूध भगवान शिव के अभिषेक के लिए क्यों उपयोग किया जाता है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा के पीछे की पौराणिक कथा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझेंगे। यह जानकारी न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को भी उजागर करती है। जानें कैसे दूध शिवजी के लिए विशेष है और इसके अर्पण से क्या लाभ होते हैं।
 

शिवजी को दूध अर्पित करने का महत्व

भगवान शिव की पूजा सोमवार के दिन विशेष रूप से की जाती है। इस दिन विधिपूर्वक शिव की आराधना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्त अक्सर शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कच्चा दूध ही क्यों अर्पित किया जाता है? इस लेख में हम इस परंपरा के पीछे के कारणों को समझेंगे।


दुग्धाभिषेक की पौराणिक कथा

विष्णु पुराण और भागवत पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, असुरों के राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। इस स्थिति में देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन का सुझाव दिया, जिससे अमृत प्राप्त होगा। देवताओं ने दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया और 14 रत्नों के साथ विष और अमृत प्राप्त किया।


भगवान शिव का विषपान

जब समुद्र मंथन से निकला विष सृष्टि के लिए खतरा बन गया, तब सभी देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी। भगवान शिव ने बिना किसी देरी के विष का सेवन किया ताकि सृष्टि की रक्षा हो सके। इस दौरान माता पार्वती ने शिवजी का गला दबाकर रखा ताकि विष नीचे न जा सके, लेकिन विष का ताप इतना तीव्र था कि शिवजी का कंठ नीला हो गया।


दूध का सेवन और अभिषेक की परंपरा

जब विष का प्रभाव बढ़ने लगा, तो देवताओं ने भगवान शिव से दूध ग्रहण करने का अनुरोध किया ताकि विष का प्रभाव कम हो सके। भगवान शिव ने दूध ग्रहण किया और इसी कारण से शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। यह मान्यता भी है कि सावन के महीने में दूध से स्नान कराने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, शिवलिंग एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है। इसे क्षरण से बचाने के लिए दूध, घी, और शहद जैसे पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। ये पदार्थ शिवलिंग को सुरक्षित रखते हैं और इसके भंगुर होने के खतरे को कम करते हैं।
  • सही मात्रा में और उचित समय पर दूध, घी, और अन्य सामग्री अर्पित की जाती है। अत्यधिक मात्रा में अभिषेक करने से शिवलिंग का क्षरण हो सकता है। इसलिए सोमवार और श्रावण माह में अभिषेक की परंपरा है।