काल भैरव अष्टमी: पूजा विधि और महत्व
काल भैरव अष्टमी, भगवान शिव के रुद्र अवतार की पूजा का विशेष दिन है। इस वर्ष यह 22 नवंबर को मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास के अनुसार, इस दिन की पूजा विधि और महत्व को समझना आवश्यक है। काल भैरव की आराधना से भय और संकट से मुक्ति मिलती है। जानें इस दिन की विशेषताएं, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
Nov 8, 2025, 17:04 IST
काल भैरव का महत्व
भगवान शिव का तीसरा रुद्र अवतार काल भैरव माना जाता है। पुराणों के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान काल भैरव प्रकट हुए थे। इस वर्ष, काल भैरव अष्टमी 22 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शंकर से भैरव रूप की उत्पत्ति हुई थी। कहा जाता है कि भगवान भैरव से काल भी डरता है, इसलिए उन्हें कालभैरव कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास के अनुसार, भैरव अष्टमी 12 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन महादेव के रुद्र रूप काल भैरव की पूजा की जाती है, जिससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन विधिपूर्वक भगवान भैरव की पूजा का विधान है। प्रातः व्रत का संकल्प लेकर रात्रि में उनकी पूजा की जाती है। काल भैरव अष्टमी को कालाष्टमी भी कहा जाता है।
भैरव अष्टमी शुभ मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 11 नवंबर को रात्रि 11:08 बजे शुरू होगी और 12 नवंबर को रात्रि 10:58 बजे समाप्त होगी। इस दिन काल भैरव की पूजा निशा काल में की जाती है।
शिव-शक्ति की तिथि अष्टमी
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास के अनुसार, अष्टमी पर काल भैरव प्रकट हुए थे, इसलिए इसे कालाष्टमी कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा की परंपरा है। सालभर में अष्टमी तिथि पर आने वाले सभी तीज-त्योहार देवी से जुड़े होते हैं। इस दिन शिव और शक्ति दोनों का प्रभाव होने से भैरव पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
बीमारियों से मुक्ति
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि काल भैरव का अर्थ है भय को हरने वाला। उनकी पूजा से मृत्यु और संकट का डर दूर होता है। नारद पुराण में कहा गया है कि काल भैरव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऊनी कपड़ों का दान
इस बार काल भैरव अष्टमी शनिवार को है, इसलिए इस पर्व पर दो रंग का कंबल दान करना चाहिए। इससे भैरव और शनिदेव दोनों प्रसन्न होते हैं। अगहन महीने में ऊनी कपड़ों का दान करना शुभ माना जाता है।
रात्रि पूजा का महत्व
कुण्डली विश्लेषक डा. अनीष व्यास के अनुसार, काल भैरव की उपासना प्रदोष काल में की जाती है। रात्रि जागरण कर भगवान शिव, माता पार्वती और काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है।
कष्टों से मुक्ति
ग्रंथों के अनुसार, भगवान काल भैरव की पूजा करने वाले का हर डर दूर हो जाता है। काल भैरव भगवान शिव का एक प्रचंड रूप हैं।
कालभैरव जयंती का महत्व
भगवान कालभैरव की पूजा से साधक को भय से मुक्ति मिलती है। इनकी पूजा से ग्रह बाधा और शत्रु बाधा से भी छुटकारा मिलता है।
मंत्रों का जप
काल भैरव जयंती के दिन किसी भी शिव मंदिर में जाकर काल भैरव जी के मंत्रों का जप करने से कष्टों का नाश होता है।
पूजन विधि
अष्टमी तिथि को प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव के समक्ष दीपक जलाएं और पूजा करें। रात्रि में काल भैरव की पूजा का विधान है।