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कावड़ यात्रा 2025: रावण की शिव भक्ति की पौराणिक कथा

कावड़ यात्रा 2025 के संदर्भ में रावण की भगवान शिव के प्रति भक्ति की पौराणिक कथा को जानें। रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, लेकिन उनकी शिव भक्ति और कावड़ यात्रा की परंपरा के पीछे की कहानी भी महत्वपूर्ण है। यह यात्रा भक्तों के लिए एक विशेष अवसर है, जिसमें वे पवित्र जल लेकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। जानें इस यात्रा का महत्व और रावण की तपस्या के बारे में।
 

रावण का बुराई और भक्ति का प्रतीक

रावण को आमतौर पर बुराई का प्रतीक माना जाता है, जिसमें अहंकार, लालच, गुस्सा, मोह, जलन, चिंता, स्वार्थ, अज्ञान और द्वेष जैसी भावनाएँ शामिल हैं। हालांकि, कुछ समुदायों में रावण को एक महान योद्धा और विद्वान के रूप में पूजा जाता है। उन्हें भगवान शिव का परम भक्त भी माना जाता है, जो नियमित रूप से शिव की आराधना करते थे।


कठोर तपस्या और कावड़ यात्रा

रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया और शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। इसके साथ ही, उन्होंने भगवान शिव के लिए कावड़ यात्रा की, जो देशभर में कावड़ यात्रा की परंपरा की शुरुआत का कारण बनी।


महादेव का जलाभिषेक

पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया था। जब रावण को इस बात का पता चला, तो उन्होंने गंगाजल भरकर पुरा महादेव के शिवलिंग का जलाभिषेक किया। यह स्थान उत्तर प्रदेश के मेरठ के पास बागपत जिले में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है।


कावड़ यात्रा की परंपरा

हर साल, भक्तजन गंगा, नर्मदा, शिप्रा या गोदावरी जैसी पवित्र नदियों से जल लाकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। इस प्रक्रिया से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति का वरदान देते हैं।