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कृच्छ्र चतुर्थी व्रत कथा: संकटों से मुक्ति का मार्ग

कृच्छ्र चतुर्थी, जिसे संकट चौथ भी कहा जाता है, माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत की कथा माता पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी से जुड़ी है। इसमें गणेश जी का सिर काटने की घटना और माता पार्वती का आशीर्वाद शामिल है, जो संकटों से मुक्ति का मार्ग बताता है। राजा हरिश्चंद्र और रानी तारामती की कथा भी इस व्रत के प्रभाव को दर्शाती है। जानें इस व्रत के महत्व और इसके पीछे की पौराणिक कथाएँ।
 

कृच्छ्र चतुर्थी व्रत कथा

कृच्छ्र चतुर्थी व्रत कथा: इसे संकट चौथ भी कहा जाता है, जो माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस व्रत से जुड़ी एक प्रमुख कथा माता पार्वती, भगवान शिव और गणेश जी से संबंधित है।


गणेश जी का सिर काटने की घटना

एक बार माता पार्वती स्नान करने गईं और गणेश जी को द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया। उन्होंने कहा—
“मेरी अनुमति के बिना किसी को अंदर न आने देना।”


कुछ समय बाद भगवान शिव वहां पहुंचे और अंदर जाने लगे। गणेश जी ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें रोका, जिससे शिव जी क्रोधित हो गए और उन्होंने गणेश जी का सिर काट दिया।


पार्वती का क्रोध और शिव का पश्चाताप

जब माता पार्वती को इस घटना का पता चला, तो वे अत्यंत दुखी हुईं और प्रलय लाने की चेतावनी दी। देवताओं ने उन्हें शांत करने का प्रयास किया। तब शिव जी ने एक हाथी का सिर लाकर गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया और उन्हें पुनर्जीवित किया—
साथ ही वरदान दिया कि त्रिलोक में सबसे पहले उनकी पूजा होगी।


माता पार्वती का आशीर्वाद

माता पार्वती ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि–
“जो भी व्यक्ति माघ कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी की पूजा करेगा, उसके जीवन के सभी संकट दूर होंगे और उसे संतान, धन व मोक्ष की प्राप्ति होगी।”
तभी से यह तिथि कृच्छ्र चतुर्थी या संकट चौथ के रूप में प्रसिद्ध हो गई।


राजा हरिश्चंद्र और रानी तारामती की कथा

एक अन्य पौराणिक कथा में, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी तारामती कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे थे।
अपने दुखों को दूर करने के लिए रानी तारामती ने गणेश जी का व्रत रखा।


व्रत के प्रभाव

इस व्रत के प्रभाव से उनके सभी कष्ट दूर हुए,
राज्य वापस मिला,
और पुत्र की प्राप्ति हुई।


तभी से यह माना जाता है कि कृच्छ्र चतुर्थी का व्रत जीवन के हर संकट को दूर करता है।