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कृष्ण जन्माष्टमी 2025: मोरपंख का महत्व और पौराणिक कथाएं

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 के अवसर पर मोरपंख का महत्व और इसके पीछे की पौराणिक कथाएं जानें। यह लेख भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी रोचक जानकारी प्रस्तुत करता है, जिसमें मोरपंख की सजावट और इसके आध्यात्मिक महत्व का वर्णन किया गया है। जानें कैसे मोरपंख ने कृष्ण की छवि को और भी मोहक बनाया और भक्तों के लिए इसका क्या महत्व है।
 

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 का पर्व

कृष्ण जन्माष्टमी 2025: इस विशेष दिन पर देशभर में श्रद्धा और भक्ति का माहौल देखने को मिलता है। भक्त भगवान श्रीकृष्ण के जीवन, उनकी लीलाओं और प्रिय श्रृंगार की विशेषताओं को याद करते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है उनके मुकुट में सजा मोरपंख, जो सदियों से उनके स्वरूप का अभिन्न हिस्सा रहा है। मोरपंख केवल सजावट नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी पौराणिक कथाएं और आध्यात्मिक महत्व छिपा हुआ है।


कहा जाता है कि मोरपंख भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी दिव्य लीलाओं से जुड़ा हुआ है। यह न केवल उनकी मोहक छवि को और आकर्षक बनाता है, बल्कि इसके पीछे सौभाग्य, शांति और प्रेम का संदेश भी है। पौराणिक ग्रंथों में कई कारण बताए गए हैं कि क्यों भगवान के मुकुट में मोरपंख सजाया जाता है। आइए जानते हैं इससे जुड़ी तीन प्रमुख कथाएं और उनका महत्व।


राहु दोष और मां यशोदा का उपाय

कथाओं के अनुसार, जन्म के कुछ समय बाद माता यशोदा ने नन्हे कान्हा की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी ने बताया कि कान्हा पर राहु दोष है। मां यशोदा ने उपाय पूछा, तो उन्हें सलाह दी गई कि मोरपंख हमेशा उनके पास रहे तो यह दोष शांत हो जाएगा। मां ने एक दिन कान्हा के मुकुट में मोरपंख सजाया और उनकी सुंदरता देखकर तय कर लिया कि यह श्रृंगार हमेशा रहेगा।


श्रृंगार में मोरपंख की अद्भुत छवि

एक अन्य कथा में वर्णन है कि मां यशोदा कान्हा को प्रतिदिन अलग-अलग श्रृंगार से सजाती थीं। एक दिन उन्होंने मोरपंख का श्रृंगार किया, जिसे देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए। तभी से मोरपंख उनके मुकुट का स्थायी हिस्सा बन गया।


मोरों का प्रेम भरा उपहार

एक प्रसंग के अनुसार, एक बार बाल कृष्ण वन में बांसुरी बजा रहे थे। उनकी मधुर धुन पर मोरों का एक झुंड नाचने लगा। नृत्य समाप्त होने के बाद मोरों के सेनापति ने सबसे सुंदर पंख कान्हा को अर्पित किया। कृष्ण ने प्रेम से उसे स्वीकार किया और अपने मुकुट में सजा लिया।


मोरपंख का आध्यात्मिक महत्व

हिंदू धर्म में मोरपंख को सौभाग्य, शांति, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना गया है। गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में बताया गया है कि मोर के पंख में ब्रह्मांड के रंग-नीला, हरा, सुनहरा-सृष्टि के संतुलन का प्रतिनिधित्व करते हैं। भागवत पुराण में इसे भगवान की लीलाओं और प्रकृति से उनके अटूट संबंध का प्रतीक माना गया है। मोरपंख “तमस” यानी नकारात्मक ऊर्जा का नाशक भी है।


इन पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक महत्व के कारण आज भी कृष्ण भक्ति मोरपंख के बिना अधूरी मानी जाती है। भक्तों के लिए यह केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है, जो जन्माष्टमी से लेकर रोज़ाना की पूजा तक भगवान की पहचान में शामिल है।