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गयाजी के जनार्दन मंदिर में जीवित लोग करते हैं अपना श्राद्ध

गयाजी का जनार्दन मंदिर एक अनोखी परंपरा का केंद्र है, जहां जीवित लोग अपने श्राद्ध का आयोजन करते हैं। पितृ पक्ष के दौरान यहां तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितृ ऋण से मुक्ति का अवसर मिलता है। जानें इस मंदिर की विशेषताएँ और यहां की अनूठी प्रक्रिया के बारे में।
 

पितृ ऋण का तर्पण: गयाजी का अनोखा मंदिर


गयाजी में तर्पण का महत्व
पितृ पक्ष का समय आ चुका है, जो 21 सितंबर तक चलेगा। यह अवधि पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। आज हम आपको गयाजी के एक विशेष मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां जीवित लोग अपने श्राद्ध का आयोजन करते हैं।


गयाजी में तर्पण करने से अनेक जन्मों का पितृ ऋण समाप्त हो जाता है, यही कारण है कि इस समय लोग यहां आकर अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करते हैं।


गयाजी में पिंडदान का महत्व


गयाजी में पिंडदान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि यहां पितरों का पिंडदान करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। हम जनार्दन मंदिर के बारे में जानेंगे, जो इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है।


54 पिंड देवी और 53 पवित्र स्थल


गयाजी में लगभग 54 पिंड देवी और 53 पवित्र स्थल हैं, लेकिन जनार्दन मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां जीवित व्यक्ति अपने श्राद्ध का आयोजन करते हैं। यह मंदिर भस्म कूट पर्वत पर स्थित है।


आत्मश्राद्ध की प्रक्रिया


यहां आने वाले लोग पहले वैष्णव सिद्धि का संकल्प लेते हैं और फिर भगवान जनार्दन की पूजा करते हैं। इसके बाद दही और चावल से बने तीन पिंड अर्पित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में तिल का उपयोग नहीं किया जाता। आत्मश्राद्ध की यह प्रक्रिया तीन दिनों तक चलती है।


पितृ ऋण से मुक्ति


यहां वे लोग श्राद्ध करते हैं, जिनके पास संतान नहीं है या जिनका कोई परिवार नहीं है। जनार्दन भगवान यहां स्वयं पिंड ग्रहण करते हैं, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।


मंदिर की विशेषताएँ


जनार्दन मंदिर प्राचीन और चट्टानों से बना है, जहां भगवान विष्णु की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। लोग यहां अपने पूर्वजों के लिए भी पिंडदान करते हैं।